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चाकोसमो संधि
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कहकर निकल गये । परन्तु रोते हुए फिर उसे उलटे भूल गये । निर्धन, लक्ष्मणसे रहित और भी अनेकों मुक्त रा मुजंगकी तरह बनमें 'हा सीता, हा सीता' कहते हुए भ्रमण करते हैं ||१८||
[१२] भग्नमान और भ्रमण करते हुए रामने वनदेवता से पूछा - "मुझे क्षण-क्षण में क्यों दुखी कर रहे हो । बताओ यह तुमने मेरी कान्ता देखी हो ।" यह कहकर वह आगे बढ़े ही थे कि उन्हें एक मत्त गज मिला। उन्होंने कहा "अरे मेरी कामिनी की तरह सुन्दर गतिवाले गज, क्या तुमने मेरी मृगनयनीको देखा हूँ ?" अपनी ही प्रतिध्वनिसे प्रताड़ित होकर वह यहीं समझते थे कि मानो सीता देवीने ही उन्हें पुकारा है। कहीं वह नील कमलोंको अपनी पत्नीके विशाल नयन समझ बैठते, कहीं हिलते हुए अशोक वृक्षको वे यह समझ लेते कि सीतादेवीकी बाँह हिल-डुल रही है । इस प्रकार समस्त धरती और वनकी खोज करके राम वापस आ गये, और वह अपने सुन्दर लतागृह में पहुँचे । अपना धनुष-बाण ( उतारकर ) एक ओर रखकर वह धरतीपर गिर पड़े ॥१-९॥
चालीसवीं सन्धि
जो दशरथके लपका कारण हैं, जिसमें सबका उद्धार है, जो वाकर्ण के सम्यक्त्व से भरित है, जिसमें जिनवरका गुण कीर्तन है, सीताका सतीत्व है, ऐसे उस 'राघवचरित' को सुनो।
[१] जो शान्त हैं, दोषोंसे रहित हैं, बुद्धिके अधीश हैं, सन्ताप और पापको सन्त्रास देनेवाले हैं, जो सुन्दर कान्ति से रत हैं, घोर संसारका शोषण करनेवाले हैं, ऐसे उन देव (मुनि