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अद्वतीसमो संधि गयी हैं, किसीने छल किया है।" ॥१-९||
[१२] मरकतमणिके रंगवाले लक्ष्मणने फिर कहा, "मैंने नाद नहीं किया किसी दूसरेने किया है ।" यह सुनकर राम जमवक वापस आते हैं तबतक सीताहरण आ पहुँचता है। दशानन पुष्पक विमानमें आया, जैसे इन्द्र अपने शिविकायानमें आया हो । वह रामकी पत्नी के निकट पहुंचा, जिस प्रकार मतवाला गजेन्द्र हथिनांके पास पहुंचता है। उसने दोनों हाथोंसे सीता को, अपनी झरीरहानिके समान उस स्थानसे उठा लिया, जैसे उसने अपने कुटकी भवितव्यताको ललकारा हो, जैसे लंका नगरीमें शंकाका प्रवेश कराया हो, मानो निशाचरलोकके लिए, वाशनि हो। जैसे रामका भयंकर धनुष हो। मानी यशकी हानि और अनेक दुखोंकी खान हो । मानो मूखोंके लिए परलोककी पगडण्डी हो । रावण तत्काल विमानसे उसे ढोकर आकाश में ले गया मानो क्रुद्ध कालने वनवासी रामका जीवन अपहत कर लिया हो।॥१-९।।
[१३] जैसे आकाशके आँगनमें विमान चला सीता देवीने तरक्षण आक्रान्दन शुरू कर दिया। उस आक्रन्दनको सुनकर आदरणीय जटायु अपना शरीर धुनता हुआ दौड़ा आया। उसने चोचोंके आघात और नखोंके निघातसे दशाननको आहत कर दिया। एक बार वह जबतक आश्वस्त होता, तबतक यह उसपर सौ-सौ बार झपटता। शत्रुओंका विदारण करनेवाला राषण अस्त-व्यस्त हो जाता है, वह मनमें चन्द्रहास तलवारकी याद करता है। वह सीताको भी पकड़ता है और अपने अंगकी रक्षा करता है। चारों दिशाओंमें देखता है, और लज्जित होता है। उसने बड़ी कठिनाईसे अपनेको धीरज बंधाया और हाथका कठोर दृढ़ कठिन शॉपढ़ मारा। पक्षी समरांगणमें गिर पड़ा । आकाशमें देवोंने कल-कल निनाद