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असम संधि
'चरम सीमापर पहुँचा हुआ है, जिसके साथ यह कन्या बात करती है, बार-बार उन्हें पान समर्पित करती हैं। हाथमें हाथ लेकर बात करती है। चरण युगलको अपनी गोद में रखती है। जो वह बलयोंसे सहित, मालती माला के समान कोमल बाहोंसे आलिंगन करती हैं, जो स्वनरूपी महागजों से प्रेरित करती हैं, जो नाना भंगिमाओंसे मुखका चुम्बन करती है, जो स्वच्छ तारिकाओं वाले विश्रमभरित विकारवाले नेत्रोंसे देखती है, जो अपने मनमें चाहकर अनुभोग करती है, ऐसे उस रामका समस्त त्रिभुवन में कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं हैं । यह मनुष्य धन्य है जिसकी यह मनपसन्द स्त्री हैं, जब तक मैं इसे नहीं लेता, तब तक शरीरको सुख कहाँ ? ॥११- ९॥
[५] सीताको देखकर रावणको उन्माद होने लगा। रावण
के तीरीक्षा प्रहार हो गया। पी अवस्था में उसका मुख विकारोंसे भग्न हो जाता है, प्रेमके वशीभूत वह किसी से भी लज्जित नहीं होता। दूसरीमें मुखसे पसीना निकलने लगा । और वह हर्षपूर्वक प्रगाढ़ आलिंगन माँगने लगता | तीसरी में बहू विरहानलसे अत्यधिक संतप्त हो उठता । कामसे ग्रस्त होकर वह बार-बार बोलता | चौथी में निःश्वास लेते हुए नहीं थकता | सिर हिलाता और भौंहोंको टेढ़ी करता । पाँचवीं में पंचम स्वरमें अलाप करता और हँसकर अपनी दन्तपंक्ति दिखाता। छठी में शरीरको मोड़ता और हाथ मोड़ता फिर दाढ़ीको पकड़कर नोचता। सातवीं अवस्था में तड़फने लगता । आठवीं में मूर्च्छा आती और जाती। नौवींमें मृत्यु निकट आ पहुँची । दसवीं अवस्था में वह प्राणोंसे किसी प्रकार मुक्त भर नहीं हुआ। दसमुख अपनी संस्तुति करता है, "मैं दसमुखोंसे जानकीका बलपूर्वक आलिंगन करूँगा, नहीं नहीं सुरलोकको
जित करूँगा " ॥१-२०१
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