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अट्टतीसमो संघि
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रहित तारा-समुह अच्छा नहीं, रत्नाकर अकेला । अच्छा, विस्तारवाला, नदियोंका समूह, अच्छा नहीं। अकेली आग अच्छी, परन्तु गिरियर और वृक्षोंसे सहित वन-समूह अच्छा नहीं। एक जो चौदह हजार को रोक लेता है, वह युद्धके मैदान में मुझे भी मार देगा। देखो प्रहार करता हुआ कैसा प्रवेश करता है, धनुष सर और संधान दिखाई नहीं देता । न हाथी, न छोड़े, न रत्नवर और न ध्वजदण्ड केवल महीतलपर गिरते हुए धड़ दिखाई पड़ते हैं ।।१-८॥
[३] जब वह प्रहार करते हुए लक्ष्म गकी प्रशंसा कर रहा था, तभी उसे सीता दिखाई दी, जो सुकविकी कथाकी तरह सुन्दर सन्धियोंसे जुड़ी हुई थी, सुन्दर पद (चरण और पद); सुवचन (सुन्दर बोली और वचन), सुशब्द ( सुन्दर शब्दों वाली); और सुबद्ध (अच्छी तरह निबद्ध) श्री। स्थिर कलहंस के समान चलनेवाली, गतिमें मन्थर, मध्यमें कृश, नितम्ब में अत्यन्त विस्तारवाली, नाभिप्रदेशसे निकली हुई रोमराजि इस प्रकार थी मानो चींटियोंकी कतार विलीन हो गयी हो । जो अभिनव (हुड) शरीर | पीन स्तनोंवाली थी मानो उर रूपी खम्भोंको नाश करनेवाला मतवाला गज हो । 'इसका कलंक रहिन मुख कमल शोभित है, मानो मानसरोवर में कमल खिला हुआ हो। सुन्दर लोचन ऐसे है गानो ललित प्रसन्न श्रेष्ठ कन्याओंको वर मिल गये हों। उसके पुट्टी पर वेर्णः इस प्रकार व्याप्त हैं मानो नन्दन लताओंसे नागिन लिपटी हुई हो। अधिक कहनेसे क्या तीनों मुबन में जो-जो श्रेष्ठ है उन सयको मिलाकर मानो विधाताने उसके शरीरकी रचना की है ।।१-९||
[४] इस के अनन्तर अपने कुलके दीपक रावणने रामजी प्रशंसा की। "केवल इसका जीवन सफल है कि जिसका सुभगत्व