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घउसोसमो संधि रहता है, जो रात्रिभोजन छोड़ देता है, वह विमल शरीर और विमल गोत्र प्राप्त करता है। जो सुना हुआ भी नहीं सुनता, देखा हुआ भी नहीं देखता, किसीके द्वारा कहे गये को किसीसे नहीं कहता, भोजनमें मौन ( चौथा अनर्थ दण्ड ) का पालन करता है, वह शिचके लिए शाश्वत गमनको देखता है ।।१-९।।
[९] परमेश्वर अच्छी प्रकारसे यह कहते हैं. जो जिस अतको मागता है, वह उस मिलता है। कोई सम्यक्त्वको, कोई अत्तोंको, कोई गुणगणों और शब्दरूपी सैकड़ों रत्नोंको ग्रहण करता है । वंशस्थल नगरके राजाने तपश्चरण प्रहण कर लिया । देवता वन्दनाभक्ति करके चले गये। जानकीने धर्मको धुरी शीलवत ग्रहण कर लिया। राधवने भी व्रतोंको चाहा, और गुरुके द्वारा प्रदत्त उन्हें सिरसे स्वीकार कर लिया। लेकिन बालुकाप्रभ नरकका निरीक्षण करनेवाले लक्ष्मणके पास कोई व्रत नहीं ठहर सका। वे तीनों कई दिनों तक वहाँ ठहरे, तथा जिनपूजा और जिनाभिषेक करते रहे। सैकड़ों दिगम्बर मुनियोंको आहार करवाया और दोनोंको दान दिलवाया । इस प्रकार त्रिभुवनके जनोंके मनों और नेत्रोंको आनन्द देनेवाले जिनेन्द्रकी वन्दनाभक्ति कर सीता, लक्ष्मण और रामने प्रस्थान किया और वे तीनों दण्डकारण्यमें पहुँचे ।।५-९।। __ [१०] वह महाटवी उन्हें विलासिनीकी तरह दिखाई पड़ी। जो गिरिवरके स्तनरूपी शिखरोको प्रकाशित कर रही थी, जो सिंहोंके नखसमूहसे विदारित थी, जो दीर्घ सरोवररूपी नेत्रोंसे विस्फारित थी, जो गुफा घाटियोंके मुख कुहरसे विभूषित और वृक्षरूपी रोमावलिसे शोभित थी। चन्दन और अगरुगन्धसे सुवासित थी, इन्द्रगोपरूपी ( वीरबहूटी) केशरसे चर्चित थी। अथवा अधिक विस्तारसे क्या! मानो वह हाथियोंके पैरके संचार, निर्झररूपी मृदंगोंके शब्द, मयूरोंके