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पंचतीसमो संधि
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पैतीसवीं सन्धि
गुप्त और सुगुम्न मुनियोंके प्रभाव, राम और सीताके परम सद्भावसे देवोंने एक क्षणमें दानकी ऋद्धिका प्रदर्शन किया। उन्होंने रामके घर में धनकी वर्षा की।
[१] साढ़े तीन लाख अत्यन्त मूल्यवान रत्नोंकी वृष्टि हुई । अपने हाथों रत्नोंकी वर्षा कर सुरबर-समूहने रामकी प्रशंसा की-"त्रिभुवनमें एक अकेले राम धन्य है कि जिन्होंने वनमें दिव्याहार दिया, जिससे सैकड़ों देवता अपने मनमें सन्तुष्ट हुए, दूसरे दानसे क्या ? अन्नसे ही सचराचर विश्व स्थित है, अन्नसे ही धर्म-कर्म और पुरुषार्थ होता है, 1 अन्नसे ऋद्धिवृद्धि और अच्छे कुलमें उत्पत्ति होती है। अन्नसे है। सविभ्रमप्रेम और विलास होता है। अन्नसे गेय-वेद और सिद्धाक्षर होते हैं । अन्नसे झान-ध्यान और परमाभर होते हैं । अतः अन्नको छोड़कर, और क्या दिया जाये कि जिससे बड़ा भोग प्राप्त हो । अन्न, स्वर्ण, कन्या और गोदान, भूमि, मणि, सिद्धान्त, पुराण सबमें अन्नदानका स्थान सबसे ऊपर है, उसी प्रकार, जिस प्रकार परशासनमें जिनशासनका ॥१-९॥
[२] दान-ऋद्धि देखकर खगेश्वर जटायुको केवल पूर्वजन्मका स्मरण हो आया । मुनिराजके अनुरागसे गद्गद वचन असे जैसे किसीने मोंगरेसे सिरपर आघात कर दिया हो। जैसेजैसे वह अपने भवान्तरकी याद करता है, वैसे-वैसे निरन्तर वह अश्रुधारा छोड़ने लगता है, "मुझ पापीने त्रिलोकको आनन्द देनेवाले पाँच सौ मुनियों को पीड़ित किया," इस प्रकार प्रलाप करता हुआ वह पक्षी मूच्छित होकर मुनिके चरणोपर गिर