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पंचतीसमो संधि
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पड़ा। पैरोंके प्रक्षालन- जलसे आश्वस्त होकर रामने फिर उसे सान्त्वना दी। सीताने कहा - " इस समय तुम मेरे पुत्र हो, तुम शीघ्र बढ़ो और सुख धारण करो ।" इतने में रत्नों के प्रकाशसे आलोकित उसके पंख सोने के हो गये। चोंच विद्रमकी, कण्ठ नीलमणिके समान, पैर वैदूर्यमणियोंके और पीठ मणियोंकी । वह पक्षी शीघ्र पाँच रंगोंवाला हो गया, मानो दूसरा ही रत्नपद ना पड़ा हो
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[[३] भाव से दोनों मुनियोंकी प्रदक्षिणा देते हुए और नटकी भाँति हर्ष-विषादको प्राप्त होते हुए, नेत्रोंके लिए आनन्ददायक उस पक्षीको अब रामने देखा तो दद्दारथ-पुत्र राम प्रणाम करके पूछते हैं, "हे आकाशगामी चार गतिरूपी महानदीको झुका देनेवाले मुनिवर, बताइए किस कारण सुन्दर कान्तिवाला यह पक्षी स्वर्णवर्णका हो गया ।" यह सुनकर उन अनासंग मुनिने कहा, "उत्तम मनुष्यकी संगतिसे सभी छोटे आदमी बड़े आदमी बन जाते हैं उसी प्रकार जिस प्रकार वृक्ष भी पर्वतकी घोटीपर बड़ा दिखाई देता है । मेरु पर्वत के कटिनितम्बपर तृण भी हेमकी तरह उज्ज्वल दिखाई देता है। सीपीके सम्पुट में जल भी मोती हो जाता है। उसी प्रकार मुनिके प्रक्षालन-जल और मणिरत्नों के प्रकाशसे स्वर्ण वर्ण हो गया ।" यह वचन सुनकर, असत्को पाने की इच्छावाले नरनाथ रामने पूछा"बिलांग घूमता हुआ यह पक्षी किस कारण से मूर्किछत हुआ" ॥१-२॥
[४] तीन ज्ञान शरीरवाले परमेश्वर कहते हैं - यह पक्षी (पहले) राज्येश्वर था और दण्डपुर नगरका उपभोग करता था । दण्डक नामका यह राजा बौद्धोंका भक्त था । एक दिन बहु शिकार के लिए चला कि इतनेमें उसे त्रिकालयोगी मुनि मिले। वह आतापिनी शिलापर हाथ लम्बे किये हुए स्थित थे, सुमेरु पर्वतकी