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अनोखी अभि
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तेजसे चन्द्रमा अपनी प्रभा छोड़ देता था, जिसकी धारमें कालदृष्टि बसती थी, जिससे काल कृतान्त और यम भी त्रस्त था। उस तलवारको लक्ष्मणने अपना हाथ फैलाकर उसी अकार ले लिया, जिस प्रकार दूसरे पुरुषके पास जानेवाली स्त्रीको पकड़ लिया जाता है। फिर उसने खेल करते हुए तलवार से जब वंशस्थलको आहत किया तो उससे मुकुट और कुण्डलों सहित सिर उछलकर गिर पड़ा ||१-९ ॥
[४] जब लक्ष्मणने गिरे हुए सिररूपी कमलको देखा तो उसने अपने दोनों हाथ पीटे (और सोचा कि मुझे धिक्कार है कि मैंने अकारण ही बत्तीस लक्षण धारण करनेवाले इस मनुष्यका वध कर दिया। फिर जैसे ही वह वंशस्थल देखता है, वैसे ही उसने फड़कते हुए शरीरवाले मनुष्य-धढ़को देखा। उसे देखकर खड्गधारी लक्ष्मण विचार करता है कि 'मायारूप में यह कोई आदमी था।' यह सोचकर लक्ष्मण चला गया और एक पल में वह अपने घर पहुँचा | रामने पूछा - "हे सुभट चन्द्र! तुम कहाँ गये थे, और यह तलवार तुमने कहाँ प्राप्त की ।" लक्ष्मणने भी यह सारा वृतान्त कह सुनाया कि जिस प्रकार उसने वंशस्थल देखा था, जिस प्रकार वह अतुलबल खड्ग प्राप्त किया था और जिस प्रकार कुमारका सिररूपी कमल काटा था। रामने कहा- "व्यर्थ इसको तुमने नष्ट किया । यह सामान्य आदमी नहीं हैं, तुमने यमकी जीभ उखाड़ ली हैं" ॥१-२॥
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[५] जब जनकपुत्रीने यह बात सुनी तो वह काँपती हुई बोली- "विशाल लतामण्डप में बैठे हुए और वनमें प्रवेश करने के बाद भी सुख नहीं है । लक्ष्मण जहाँ-जहाँ भी भ्रमण करते हैं वहाँ कुछ न कुछ विनाश करते रहते हैं। जिनमें हाथपैर, शरीर और सिरका खण्डन है ऐसे युद्धोंसे हे माँ विरक्त हो सठी हूँ। मुझे पिताने ऐसे लोगोंको सौंप दिया कि जो काल