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तोलमो संधि
२५५ और यमकी तरह हैं।" यह शब्द सुनकर लक्ष्मण कहते हैं"यदि राजा होकर भी पौरुष नहीं है, जिस प्रकार दानसे, जिस प्रकार सुकवित्वसे, जिस प्रकार शस्त्रसे, जिस प्रकार कीर्तनसे सब मनुष्योंकी कीर्ति परिभ्रमण करती है और जिस प्रकार जिनवरसे मुरन धवल होते हैं। इन इतनों में से जिसके मनमें एक भी बात अच्छी नहीं लगती, वह जन्मा हुआ भी मृत है, व्यर्थ ही यम उसे ले जाता है ।।१-९॥
[६] इसी बीच देवोंके लिए सन्तापदायक रावणकी सगी छोटी बहन, पाताललकाके लंकेश्वर उस खरदूषणकी प्राणप्यारी पत्नी चन्दनना हर्षसे जलती हुई, आपने पुत्र सम्हः कुमार) के पास चली (यह सोचती हुई कि) "लो, चार दिन ऊपर बारह वर्ष हो गये हैं, दूसरे दिन वह तलवार हाथमें आ जायेगी, वह तलवार आज हाथसे गिर जायेगी।" मधुर स्वरवाली वह इस प्रकार कहती हु, नैवेद्य, दीप, अग्नि हाथमें लेकर सज्जनोंके मनको आनन्द देनेवाली गयी और अपने पुत्रके पास पहुँची। उस बीच में उसने तलवारसे छिन्न-भिन्न पड़ा हुआ वंशस्थल देखा । उसने कुमारका मुकुट और कुण्डलोंसे शोभित सिर देखा मानो जाते हुए किन्नरोंके द्वारा छोड़ा गया श्रेष्ठ स्वर्णकमल हो ॥१-५॥
७] सिरकमलको देखकर भयभीत रोती हुई वह मूर्षिछत हो गयी | वेदनासे व्याकुल आक्रन्दन करती और रोती हुई वह निर्जीव और निश्चेतन हो गयी। फिर बड़ी कठिनाईसे उसने अपने मनको रोका। उसका मुख कातर था, और आँखें भयसे बन्द थीं। मानो मूर्छाने उसकी बहुत बड़ी सहायता की कि जो उसने जाने की इच्छा रखनेवाले जीवकी रक्षा की। वह उठकर फिर अपने हाथ पीटने लगती है। फिर सिर पीटती है और यक्षःस्थल पीटती है । फिर पुकारती है, फिर धाड़ मारकर