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पंचतीसमो संधि
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देवको नाश करनेवाले थे, जो भव्यजनोंका अभ्युद्धार करनेवाले थे, जो शिवके शाश्वत सुखको निमन्त्रण देनेवाले थे, जो गर्व
और प्रमादको दूर करने वाले थे, जो दारिद्रय और दुःखका अय करनेवाले थे, जो सिद्धिरूपी उत्तम अंगनाके प्राणप्रिय थे, जो व्याकरण और पुराणोके जानकार थे, सिद्धान्तके जानकार एकसे एक प्रमुख थे। उस राजाने ऐसे उन मुनियोंको यन्त्रमें अलवा दिया, रक और मांसके कसमसाते हुए वे उसमें पेर दिये गये । जब पाँच सौ मुनि पेर दिये गये तो दो मुनि वहाँ पहुँचे-घोर वीर तपश्चरणका आचरण कर तथा आतापिनी शिलापर तपरूपी सूर्य तपकर ।।१-९||
[११] तत्र फिसीने उनसे कहा, "तुम लोग यहाँ प्रवेश मत करो, दोनों अपने प्राण लेकर, शीघ्र भाग जाओ। तुम्हारा गुरु आपत्ति पा रहा है। राजाने यन्त्रमें डालकर उन्हें पीड़ित किया है ।" यह सुनकर एक मुनिका मन ऋद्ध हो उठा, मानो भयकालमें यम विरुद्ध हुआ हो । उसने घोर आतध्यान किया, अपना व्रत और सम्यक्त्व सब नष्ट कर दिया। उसने अपनेसे अपनेको विभक्त किया, और तत्क्षण उसने अग्निपुंजकी रचना की। उसने जो कोपाग्नि छोड़ी वह नगरके सम्मुख पहुंची। नगर चारों दिशाओंसे जल उठा, एवं धरती और राजकुलके साथ वह आगकी ज्वालाओंकी लपेट में आ गया। हजारों घड़ोंसे जो-जो पानी डाला जाता, भाग्यके परिणामसे पानी भी जल उठता ॥१-७॥
[१२] जब अशेष नगर जलकर खाक हो गया तब दुष्ट यमयोद्धा वहाँ पहुँचे । तलवार, घन, श्रृंखला और निगड जिनके हाथमें थे, ऐसे वे त्रिलोकको भी जीतने में समर्थ थे । जो कठोर कपिल केशोंवाले भयंकर, काल और धमकी लीलाका प्रदर्शन करनेवाले, श्याम-शरीर वीर, फड़कते हुए ओठोंकाले, पीले