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________________ पंचतीसमो संधि २५३ २१३ पैतीसवीं सन्धि गुप्त और सुगुम्न मुनियोंके प्रभाव, राम और सीताके परम सद्भावसे देवोंने एक क्षणमें दानकी ऋद्धिका प्रदर्शन किया। उन्होंने रामके घर में धनकी वर्षा की। [१] साढ़े तीन लाख अत्यन्त मूल्यवान रत्नोंकी वृष्टि हुई । अपने हाथों रत्नोंकी वर्षा कर सुरबर-समूहने रामकी प्रशंसा की-"त्रिभुवनमें एक अकेले राम धन्य है कि जिन्होंने वनमें दिव्याहार दिया, जिससे सैकड़ों देवता अपने मनमें सन्तुष्ट हुए, दूसरे दानसे क्या ? अन्नसे ही सचराचर विश्व स्थित है, अन्नसे ही धर्म-कर्म और पुरुषार्थ होता है, 1 अन्नसे ऋद्धिवृद्धि और अच्छे कुलमें उत्पत्ति होती है। अन्नसे है। सविभ्रमप्रेम और विलास होता है। अन्नसे गेय-वेद और सिद्धाक्षर होते हैं । अन्नसे झान-ध्यान और परमाभर होते हैं । अतः अन्नको छोड़कर, और क्या दिया जाये कि जिससे बड़ा भोग प्राप्त हो । अन्न, स्वर्ण, कन्या और गोदान, भूमि, मणि, सिद्धान्त, पुराण सबमें अन्नदानका स्थान सबसे ऊपर है, उसी प्रकार, जिस प्रकार परशासनमें जिनशासनका ॥१-९॥ [२] दान-ऋद्धि देखकर खगेश्वर जटायुको केवल पूर्वजन्मका स्मरण हो आया । मुनिराजके अनुरागसे गद्गद वचन असे जैसे किसीने मोंगरेसे सिरपर आघात कर दिया हो। जैसेजैसे वह अपने भवान्तरकी याद करता है, वैसे-वैसे निरन्तर वह अश्रुधारा छोड़ने लगता है, "मुझ पापीने त्रिलोकको आनन्द देनेवाले पाँच सौ मुनियों को पीड़ित किया," इस प्रकार प्रलाप करता हुआ वह पक्षी मूच्छित होकर मुनिके चरणोपर गिर
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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