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पडमचरित
पप-पाखालण-जलेंणासासिउ । राहवचन्दं पुणु उचयासिउ ॥३॥ सीप, कुतु 'पुत्तु महु एवहिं। छुषु बन्दउ छुडु धरउ सुखे हि' nu साव रयण-उजो भिषणा । जाय पक्ष चामीयर-वण्णा ॥४॥
घत्ता विद्यम चम्चु णील-णिह-काट पय-हलिय-षष्ण मणि-एटउ । तक्खणे पश्न-वण्णु णिव्वबियर बोयर्ड स्यण-पुञ्ज णं पडियउ ॥५॥
[1] मा विहि मि पयाहिण देहन्तज । णडु जिह हरिस-विसा हि जन्तड ॥३॥ दिनु पक्खि ज णयणापन्दश् । भणह णवेप्पिणु दसरह-जन्दषु ॥२॥ 'हे मुणिवर गयणगण-गाभिय। खड़गइ-बुक्स-महाणह-गामिय ॥३॥ कद्धि राजेण केण सच्छायड। पक्खि सुवपण-वण्णु ज जायस' ॥१॥ संणिभुणेवि घुसु णीसमें। 'सथल्लु वि उत्तिम-पुरिस-पसझे ।।५॥ पर हलुचो वि होई गरुमार। सक्लुपि सेक-सिहरें बहार ॥५॥ मेरु-णियम् तिणु वि हेमुजलु। सिपिउडेसु जलु वि मुसाहलु ॥७॥ तिह बिहा मणि-रयाएँ । जाउ सुवपण-वण्णु मुणि-तोएँ ॥८॥
। घत्ता सं णिसुणेवि दयणु असगा पुच्छिउ पुणु पिणाहु णरणा । 'विहलालु घुम्मन्तु विहाड कवणे कारणेण मुच्छेगाउ' ॥९॥
[ ] भणइ ति-णाण-पिण्ड-परमेसरु । 'पहु विहज आसि रसय ॥३॥ पट्टणु दपदाउर भुञ्जम्तड । दण्डर णाम बउबर भन्सट ॥२॥ एक-दिवस वारवि, चलियउ। तावतिकाल-जोगि मुणि मिलियउ॥३॥ विज अत्तावणे लम्विय-वाहर। अविचल मेस जेम दुरगाहन ॥१॥