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पङमचरित
पंचतीसमो संधि
गुस-सुगुप्तहँ सणेण पहाचे रामु स-सीय परम-सम्मा। देखें हिं दाण-रिद्धि खणे दरिसिय बल-मन्दिर वसुहार परिसिय ॥
. ! ]. जाय महाप स्यण सु-पगास। लक्खहँ तिणि सय पञ्चास ।।१॥ बरिसें वि रपण-घरिसु सई हथे। रामु पसिउ सुरवर-सस्र्थे ॥२॥ 'सिडवणे पावर एक्कु घलु भण्णउ । विवाहारु जेण वणे दिण्णउ' ॥३॥ मणे परिसूदइँ श्रमर-सयाई । सपणे दाणे किजह काई ॥१॥ आपण परिड मुवणु सयरायरू । अपणे धम्मु कम्म पुरिसायरु॥५॥ अपणे रिद्धि-विन्द्वि वसुभट। अण्णे पेम्मु विलासुस-विरमा ६॥ अण्ण गेड वेज सिक्खरु । श्रपणे जाणु शाणु परमक्खा ॥७॥ अण्णु मुएघि अणु किं दिजह । जेण महन्तु मोगु पाविजन ॥८॥
घत्ता
अण्ण-सुवण्ण-कण्ण-गोदागहुँ मेइणि-मणि-सिद्धन्स-पुराणहूँ। सम्बहुँ अण्ण-दाणु उच्चासणु पर-सासणहुँ जेम जिग-सासणु' ॥१॥
दाण्य-रिद्धि पेक्लेषि खगेसरु णवा जडाइ जाउ माईसरु ॥१॥ गग्गर-वयणउ मुणि-अणुराएँ। पहउ गाई सिर मोग्गर-वाएँ ॥२|| जिह जिह सुमरह णियय-भवन्तरु । सिंह तिह मेलइ अंसु गिरन्तर ॥३॥ 'भई पावेण तिलोयाणन्दहुँ । पञ्च-सयई पोलियई मुणिग्दहुँ' ॥४॥ एम पहाउ करन्तु विहाउ। गुरू-चलणेझिं परिड मुछगड ॥१॥