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________________ २५१ घडतीसमो संधि पादपूजा कर रहे हों। तब भी महानतोंके धारी वे वहाँ नहीं ठहरे | आदरणीय वे रामके आश्रम में प्रवेश करते हैं। मुनिको देखकर सीता बाहर आयी, मानो प्रत्यक्ष वनदेवी हो। (बोली) "राम! देखो देखो, आश्चर्य है वो साधु चयांके लिए निकले हैं।" इन शब्दोंसे राम पुलकित हो गये, और अपना सिर झुकाकर बोले-"ठहरिए ठहरिए ।' इस प्रकार विनयरूपी अंकुशके द्वारा साधुरूपी महागज मोड़ दिये गये । रामने उनके पैरोंका सम्मान और प्रक्षालन किया । तीन बार जलकी धारा छोड़ी। गायके दूधके रससे पैरोंको शोभित किया। पुष्प, अक्षत, नैवेद्य, दीप और अग्नि इस प्रकार आठ प्रकारसे पूजा कर गुरुकी बन्दना की, और फिर भारी भक्ति कर सीता देवी उन्हें परोसने लगी। मुखके लिए मधुर और अच्छे पेयका उन्होंने उसी प्रकार उपभोग किया, जिस प्रकार कामुकोंके द्वारा मनभाविनी कामिनीका भोग किया जाता है ।।१-११।। __ [१३] मुखको प्यारा लगनेवाला फिर उन्हें पान दिया जो मुनियोंके योग्य और हलफा था, जो सिद्धि चाहनेवाले सिद्धकी तरह सिद्ध था, जिनवरकी आयुकी तरह अत्यन्त दीर्घ था। फिर ( अग्गिमउ ).......दिया, जो सुकलनकी तरह हृदयसे इच्छित, स्नेह और इच्छासे परिपूर्ण था; फिर शुद्ध और विचित्र सालन दिये गये, जो विलासिनियोंके चित्तोंकी तरह तीखे थे। फिर मनपसन्द कढ़ी दी गयी जो अभिनव कविके वचनोंके समान मीठी थी। बाद में शुद्ध तथा दुष्ट स्त्रीकी तरह अत्यन्त गाढ़ा मट्ठा दिया गया। फिर शीतल, सुगन्धित जल दिया गया, मानो पापोंको धोनेवाला जिनवचन हो । जब आदरणीय मुनि लीलापूर्वक भोजन कर रहे थे, तभी पाँच आश्चर्य प्रकट हुए । दुन्दुभि, गन्धपवन, रत्नावली, साधुकार और कुसुमांजलि पुण्यसे पवित्र शाश्वत् दूतोंकी तरह ये पाँचों आश्चर्य स्वयं प्रकट हुए।।१-९॥ .
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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