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पउमचरिउ
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वो चिंण थक महवय धारा । रिस पेक्प्रेष्पिणु सीय विणिष्य 'राहच पेक्खु पेक्तु भच्छरियर । वलु वयण संण गो विजयसँग साहु-गय चालिय दिष्ण तिवार धार सलिलेण वि । पुष्करखय-यति- दीवारेंहिँ ।
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रामसमें पइसन्ति मचारा ॥४॥ णं पश्वख महावणदेवच ॥५॥ साहु-शुमलु चरियऍ पोसरियड' ॥ ६॥ 'दाहु बाहु' सिरुणये वि पर्वलिउ ॥ ७ ॥ किउ सम्मनणु पाप पखालिय ॥ ८ ॥ कम घचि गोसीर - रसेण वि ॥९॥ एमपयषि अटु पयारें हिं ॥ १० ॥
घता
वन्दिय गुरु गुरु मत्ति करेवि लग्ग परीसवि सोयाएवि ।
मुह पिय श्ररुद्ध पच्छ मण माविणि भुत्त पेख कामुऍ हिँ व कामिणि ॥ १५ ॥
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दिष्णु पाणु पुणु सुहद्दों पियारउ । सिद्ध सिधु जेम सिद्धोहर । पुणु अग्मिदिष्णु हियइच्छित सुइँ पुणु साल हूँ विचित्त हूँ । दिई पुणु तिम्मण मणिहइँ । पच्छ सिसिय स मच्छरु सुबउ । पुणु मय- सलिल दिष्णु सोयाकड | लीलऍ जिमि मारा जायें हिं ।
चारण-भोग्गु जेम हलुवार ॥१॥ जिणवर-आउ जेम भइदीहउ ॥ १ ॥ जिह सु-कलन्तु सु णेहु-स-इ ॥ ३ ॥ ति पाई विलासिणि-चित्तहूँ ॥ ४ ॥ अहिणव-कह-श्रयणा व मिट्ठइँ ॥५॥ बुद्ध-कल जेम अहद ॥ ६ ॥ पर जिण वयणु पाव पक्वालउ ॥ ७ ॥ पच्छारित प्रदरिक्षित तायें हिं ॥८॥
घता
दुन्दुष्टि गन्धवाउ स्यणावलि साहुकारु अष्णु कुसुमाञ्जलि | पुण्ण-पचित्त हूँ सालय- अहं पञ्चदिच्छरियाँ सह भूअहूँ ॥९॥