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छम्पोसमो संधि रोमांघरूपी कंचुकसे काँटोंवाला था । दाँतोंरूपी केशर, अधररूपी महादल, षयरूपी मकरन्द और कानरूपी पत्तोंसे युक्त था। लोचनरूपी भ्रमरोंसे चुम्बित तथा कुटिल केशोरूपी शैषालसे अंचित था। भूखरूपी महाहिमवातसे लक्ष्मणरूपी वह सरोवर आहत हो उठा। वह मुखकमल फूबरराजाके
देला म ::१.। [१२] जब मुखकमल झुका हुआ दिखाई दिया तो बालिखिल्यकी कन्याने कहा, "हे नरराजाओंके राजा, विश्वराजा, आप सुकलत्रकी तरह सुन्दर भोजन करें। जो गुल (.मधुरता और गुड़) से युक्त, सलोणु ( सौन्दर्य और नमकसे सहित ), सइच्छ ( इछा और ईखसे सहित ), मधुर सुगन्धित, सस्नेह और पथ्य सहित है। पहले उस प्रियभोजनको कर लें, बाद में कुछ भी सम्भाषण करें।" यह सुनकर देवांगनाओंके नेत्रोंके कटाक्षोंसे देखे गये लक्ष्मणने कहा-"वह जो सुन्दर वृन दिखाई देता है, बहुत-से पत्तों और शाखाओंसे प्रच्छन्न, उसके विशाल मूलमें दनुका नाशक हमारा स्वामी श्रेष्ठ है।" लक्ष्मणके वचनोसे बुलाये गये राम अपनी सीवाके साथ इस प्रकार चले मानो हथिनीसे विभूषित वनगजराज प्रसन्नता. पूर्वक जा रहा हो ।।१-८॥
[१३ ] बलभद्ररूपी महागज गरजता हुआ तरुवररूपी पहाड़ी गुफासे निकला, जिसके गण्डस्थलसे प्रस्वेद प्रवाह गिर रहा है, जिसका तरकस युगलरूपी कुम्भस्थल है। पुंखोकी कतारोंरूपी भ्रमरसमूहसे घिरा हुआ है। जो किंकिणी घण्टियोंकी मालासे शोभित है, जो विस्तृत बाणोंरूपी दाँतोस भयंकर है, स्थूल और लम्चे बाहुरूपी लम्बी सूंड़वाला है, जो धनुषरूपी आधारस्तम्भको उखाड़नेवाला है। जो ऋद्ध दुष्टरूपी महावतके लिए प्रतिकूल है, जो स्वररूपी सीत्कार करता