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यो संधि
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उसी प्रकार घेर लिया जिस प्रकार हरिणोंके द्वारा सिंह घेर लिया गया हो ॥ १ ॥
[९] कलकल करती हुई तथा जिस प्रकार कन्या ली, उस प्रकार प्रहार करो कहती हुई सेना भिड़ गयी । यह वचन सुनकर लक्ष्मण आगबबूला हो उठा। वह दौड़ा जैसे घीसे सींची गयी आग हो । अकेला लक्ष्मण था सेना अनन्त थी । तब भी वह तिनकेके बराबर समझता हुआ उससे भिड़ गया । वह चलता है, ठहरता है। मुड़ता हैं, वृक्ष उखाड़कर सेनाको चूर-चूर करता है । उछलता है, भिड़ता है, अइबोंको गिराता है। धरतीका उल्लंघन करता है घूमता है, और चक्को घुमाता है । अवगाहन करता है, संकुचित होता है, योद्धाओंको पकड़ता हैं। गजसमूहको चूर-चूर कर लोटपोट कर देता है । सुभटसमूहको उसने आघात कर गिरा दिया। वह कटु हो उठी और विपरीत मुख होकर चली गयी। जो युद्धमें चूक गये वे भाग गये । कायर लोगों के हाथसे अस्त्र छूट गये । किसीने जाकर महीधरसे कहा, "एक आदमीके बाहुदण्डसे सेना नष्ट हो गयी । युद्धमें इस प्रकार लड़िए कि उसे नष्ट कर सको, दैवयोगसे वह एक हाथमें बलपूर्वक वनमालाको लिये हुए हूँ" ॥१-२९॥
घर
[१०] यह वचन सुनकर थर-थर काँपता हुआ राजा महीमाता हुआ दौड़ा। वह महारथपर बैठा और शंख बजा दिया | विजयलक्ष्मीका आकांक्षी बहु क्रुद्ध होकर तैयार होने लगा । तब दुर्जय, दुर्भर, दुर्निवार कुमार 'भारो मारो' कहते हुए निकले । बनमाल, कुसुममाल, कल्याणमाल, जयमाल, सुमाल सुवर्णमाल, गोपाल और पाल, ये आठ भाई राजाके साथ ऐसे जान पड़ते थे मानो नौ ही ग्रह कुपित हो उठे हों । इस बीच अत्यन्त मत्सर से भरे हुए महीधरने युद्धमें लक्ष्मणको ललकारा कि मुड़-मुड़ो, युद्ध-प्रांगण में मुझे युद्ध दो । अपना