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सउत्तोसमी संधि रूपों में आकाश में फैलने लगा; उस वैसे कठिन अवसरपर, उस भारी उपसर्गके होनेपर, तुम्हारे प्रभावसे वे त्रस्त हुए, और धनुषकी टंकारसे असुर भाग खड़े हुए। तब हमारे पिता कालान्तरमें मर गये । वही इस समय गरुड़देव के रूपमें उत्पन्न हुए दिखाई दे रहे हैं ॥१-१३॥
[१४] तब उस गरड़ने परितोषित मनसे तत्काल दो विद्याएँ दी । रामके लिए प्रवर सिंहवाहिनी, और लक्ष्मणके लिए दूसरी गरुड़वाहिनी । उनमें पहली सात सौ शक्तियों के साथ थी, दूसरी तीन सौ शक्तियोंके साथ | तब दुर्लभ कौशल्याके पुत्र और जानकीके पति राम कहते हैं, "तब तक आप अपने घर रहें और अवसर आनेपर हम पर कृपा करें।" इस प्रकार गरुड़से सम्भाषण कर और गुरुके चरणोंको पकड़कर रामने फिर पूछा-"धरणी पथपर घूमते हुए हम लोगोंका जिस प्रकार जो होगा, वह उस प्रकार बताइए।" कुलभूषण रामसे कहते हैं-"दक्षिण समुद्रके अलका उल्लंघन कर तुम दोनों सैकड़ों संग्राम जीतोगे और तीन खण्ड धरतीका स्वयं भोग करोगे" ॥१-९॥
चौंतीसवीं सन्धि
केषलीको केवलज्ञान उत्पन्न होने, और चार प्रकारके देवनिकायोंके घले जानेपर राम महानतोको धारण करनेवाले कुलभूषण देशभूषणसे पूछते हैं-हे आदरणीय, धर्म और पापका फल बताइए।"