________________
I
I
t
¦
बत्तीसमो संधि
कहीं पर विशाल शरीर और पैने सींगवाले महिष थे, और कहींपर मुखसे उन्नत और कहीं पर भीतकर्ण हरिन थे। ऐसे तरुबरोंसे प्रचुर उस शैलपर आरूद, तथा धवल उज्ज्वल जानकीरूपी बिजली से शोभित राम और लक्ष्मण नवजलधरके समान जान पढ़ते थे ।। १-१३।।
थे ।
[ ४ ] जो विशाल नितम्ब बिम्बोंसे रमणीय है ऐसी सीता देवीके लिए राघव वृक्ष दिखाते हैं- "हे धन्ये, यह विशाल पीपलका पेढ है कि जहाँ ऋषभनाथको ज्ञान उत्पन्न हुआ था । क्या तुम नहीं जानती, यह वह सत्यवन्त वृक्ष हैं, जहाँ केवलज्ञान शरीरवाले अजितनाथकी खूब स्तृति की गयी थी। यह वह प्रसिद्ध इन्द्रवृक्ष है जहाँ सम्भवनाथ ज्ञानसे समृद्ध हुए यह वह सफल सरल वृक्ष है, जहाँ अभिनन्दन ज्ञानसे युक्त हुए थे । हे सीता, सुन्दर छायावाला प्रियंगु वृक्ष है जहाँ सुमविनाथ ज्ञानशरीरबाले हुए थे। हे सीता, यह वह सालवृक्ष देखो जहाँ केवलज्ञान से युक्त पद्मप्रभु स्थित थे । हे जानकी, यह वह शिरीष वृक्ष है जहाँ सुपार्श्वने ज्ञानसे विचारकर जगको जाना था । हे चन्द्रमाके समान प्रभावाली, यह वह नाग वृक्ष है कि जहाँ चन्द्रप्रभको ज्ञानको उत्पत्ति हुई थी। यह वह मालती वृक्ष दिखाई देता है, जहाँ पुष्पदन्त ज्ञानसे विभूषित हुए थे | यह वह फल-फूलोंसे भरा हुआ तेंदुकीके समान कल्पवृक्ष है कि जहाँ दुःखका नाश करने वाले शीतलनाथ और श्रेयांसनाथको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था ॥१- ११ ॥
[ ५ ] यह वह अच्छे फलों और पतोंवाला पाटली वृक्ष हैं जहां वासुपूज्यको ज्ञानकी उत्पत्ति हुई थी। यह वह जम्बू वृक्ष है, और यह वह अश्वत्थ वृक्ष है जहाँ विमल और अनन्तनाथ ज्ञानसे समृद्ध हुए थे । ये वे सुप्रसिद्ध दधिवर्ण और नन्दी वृक्ष हैं कि जहाँ कुन्धु और अरहनाथको ज्ञानकी उत्पत्ति हुई थी।
१९१