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मनीमानो समि जिन्हें शिवके शाश्वत् गमनकी जल्दी है, जो दोनों प्रकारके दोषोंके द्वारा ग्रहण नहीं किये जाते, जो दोनों प्रकारके दोषोंसे रहित हैं, दोनों ध्यानोंसे युक्त हैं, जन्म, बुढ़ापा और मृत्यु चीनोंसे रहित हैं, दर्शन, ज्ञान और चरित्रसे सहित है, जो चारों गतियाँ और चार कषायोंका नाश करनेवाले हैं, जो चार मंगलोंको करनेवाले तथा जिनका मन चार कल्याणोंकी शरणमें है। जो कठोर पाँच महाव्रतोंको धारण करनेवाले हैं, पाँच इन्द्रियोंके दोषोंको दूर करनेवाले हैं। जो छत्तीस गुण-ऋद्धिके गुणोंसे प्रवर हैं तथा छह प्रकारके जीव-निकायोंके प्रति शान्ति रखनेवाले हैं। जिन्होंने भयसे युक्त सातों नरकोंको जीत लिया है, जो अनवरत सात प्रकारके कल्याणोंको करनेवाले, दुष्ट आठ कर्मों और आठ मदोंका दमन करनेवालं हैं तथा आठ गुण
और ऋद्धियोंसे परिपूर्ण हैं। इस प्रकार एकसे एक श्रेष्ठ और गुणोंसे परिपूर्ण उन मुनियोंकी राम और लक्ष्मणने फिरसे वन्दना की। उसी प्रकार, जिस प्रकार मन्दराचलके शिखर पर उत्तम वेदिका गृहमें इन्द्र-प्रतीन्द्रके द्वारा बाल की वन्दना की जाती है ॥१-१०॥
[८] उन तीनों लोगोंने धर्मार्जन किया। उन्होंने भाव पूर्वक धन्वन-रससे उनका सम्मान किया । शुद्ध कमलोंसे पुष्पार्चा की। और फिर उन मुनि-भक्तोंने गान प्रारम्भ किया। राम सुघोष नामकी वीणा बजाते हैं, कि जो मुनिवरोंके बित्तोंको भी चलायमान कर देती है, जो रामपुरीमें पूतन यक्ष द्वारा सन्तुष्ट होकर उन्हें दी गयी थी । लक्ष्मण लक्षणोंसे युक्त गीत गाते हैं। सातों ही स्वर तीन आम और स्वरभेदसे युक्त | इक्कीस वरमूर्च्छनाओंके स्थान तथा उपचास स्वर तानें । ताल-त्रितालपर सीता नाचती हैं। वह नव रस और आठ भावों, दस दृष्टियों और बाईस लयोको जानती है कि जो भरत मुनिके द्वारा भरत