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सेतीसमो संधि
२१. [८] अपने शत्रुके वैरसे विरुद्ध उस दुर्धरने उन दोनोंको ललकारा-"अरे नर और वनचरोंको संचारित करने में समर्थ मुझसे इस समय मरो, कहाँ जाते हो?" यह सुनकर महाबत धारी बड़े भाईने छोटे भाईको धीरज बँधाया "डरो मत, स्थिाः नमो, टपसा सह-: काला धूसरे सवा आभूषण है।" उस वैसे संकट के आनेपर अन्धाधुन्ध घोर भारके आ पहनेपर, एक व्यक्ति अपने कन्धे उठाकर स्थित हो गया, उद्धार करनेकी इच्छा रखनेवाले एक भील राजाने जो कि पूर्व जन्मान्तरमें पक्षी था और यक्षस्थान नगरमें जिसकी रक्षा की गयी थी, कहा-"हे शिकारी, तू इट जा। मुनिको कौन मारता है। तू मुझसे मारा जायेगा।" इस प्रकार उसने हमें छुड़वा दिया। कालान्तरमें वह मर गया और दयाकी नसैनी. से चढ़कर वह लीलापूर्वक स्वर्ग गया ।।५-२।।
[९] पापाशय वह वसुमति भीलराज प्रचुर पाप कर बहुत समय तक नरक और तिर्यच गतिमें घूमकर धनजनसे प्रचुर अरिष्टपुर नगर में जन्पन्न हुआ। नामसे अनुद्धर, अत्यन्त दुदर्शनीय, अपनी माँ कनकप्रभाको हर्ष उत्पन्न करनेवाला। वे उदितमुदित भी, दुर्लध्य अपने कुलरूपी पर्वत राजा प्रियव्रतके पुत्र हुए। जो विज्ञान और कलाकी चरम सीमाको प्राप्त करनेवाले थे। पहाड़की तरह गम्भीर, महोदधिके समान गम्भीर गुणवाले, प्रजाका पालन करनेवाले एवं राजकाजमें निपुण, रलरथ और विचित्ररथ नामसे अंकित, पद्मावतीके पुत्र, चन्द्रमा और सूर्यके समान प्रभाषाले । छह दिनकी संलेखना कर राजा प्रियव्रत वहाँ मरकर स्वर्ग गया। झगड़ा करते हुए भयंकर अनुद्धरको युद्धमें रत्नरथ और विचित्ररथने पकड़ लिया। उन प्रचण्डोंने डमरको छुड़वा दिया। वह दूसरे जन्ममें अग्निकेतु देव हुआ ॥१-१०॥