________________
१५९
तीसमो संधि गम्भीर, वजिक ? पारसीक, परतीर, मरु, कण्याड, लाट, जालन्धर, टक्क, आभीर, कीरखस और बब्बर तथा दूसरे भी जो एक-एक प्रधान राजा थे | कौन उन राजाओंकी गणना कर सकता था। तब श्याम शरीर राजा महीधर विमन मन हो गया मानो उसके सिरपर वम पड़ा हो । (वह सोचने लगा) स्वामी (अनन्तवीर्य) के सम्मानभारको तथा भरतके दुर्धर प्रहारको आज मैं किस प्रकार सहन करूँ ? ॥१-१३॥
[३] जब राजा महीधर अपने मन में विचार करने लगा तो राम एकान्त पक्ष में स्थित हो गये। एक क्षणमें उन्होंने आठों मुगानों को बुला दिया : मागने :थ सी:, श्री आयी। मन्त्रियों और मन्त्रणाओंको छोड़कर रामने कहा--"अपनेको प्रकट मत करो। रथ, घोड़ों और महागजोंको छोड़कर स्त्री, चारण और गायकका रूप बनाकर शत्रुके उस दरबार में प्रवेश करो और नृत्य करते-करते उस अनन्तवीयको पकड़ लो।" यह वचन सुनकर वे सन्तुष्ट मन हो गये। वे स्त्रीके वेष बनाकर
और आभरण पहनकर स्थित हो गये । 'हे सुन्दरी लो तबतक तुम नगरमें रहो हम लोग फिर युद्ध में लड़ेंगे।' पुलकित बाहुवाली सीता कदाक्षसे कहती है-“हे नरनाथ, तुम जल्दी नहीं आओगे। मुझे छोड़कर तुम भारवर युद्धरूपी ससुराल में कीर्तिरूपी वधूसे विवाह मत कर लेना" ॥१.२॥
[४] वे आदरणीय खेल करते हुए चलें और पल-भरमें नन्दावर्त पहुँच गये। उन्हें जिनालय दिखाई दिया, एक क्षण उसकी प्रदक्षिणा कर तथा आगे गा-बजा-नाचकर, वहाँ सीताको स्थापित कर वे उस नगररूपो सरोवरमें प्रविष्ट हुए, जिसमें रथवर, तुरग और महागजरूपी जलचर थे, देवकुलरूपी धवल कमलोंका समूह था, नन्दनवनरूपी सघन तीर लतागृह थे ! सुन्दर विलासिनीरूपी कमलिनियोंसे जो कुचित