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एकतीसमो संधि
हो ॥१-८॥
[४] थोड़ी दूर जानेपर राम और लक्ष्मणने वहाँ क्षेमाजलि नगर देखा । जहाँ अरिदमन नामका अत्यन्त चण्ड और प्रचण्ड राजा रहता था, वहाँ बैसा दूसरा कोई नहीं था । वह राज्येश्वर सबमें वरिष्ठ था, वह राजा पथिकांके मूल में भी देख लेता था। नखोंसे भास्वर, और लाल (पूछ अस्त्रविडोष) से दीर्ष यह मातंगोंके द्वारा (गजों-गुण्डों) सिंहकी तरह ग्रहण किया जाता था। जो दुर्दम दामयोंके शिविरको चूर-चूर करनेवाला था, वह सूर (सूर्य) स्त्रियोंके मुखरूपी चन्द्रको त्रस्त करनेवाला था । उस नगरके अपर-उत्तर (वायव्य) कोणमें आधे कोशकी दूरीपर उद्यान था। सुरशेखर नामका विश्व में प्रसिद्ध जो उद्यान मानो रामके लिए हाथमें अर्घ लेकर स्थित था । नववृक्षोंसे सघन उस वैसे उद्यानमें कि जहाँ अमरेन्द्र रतिक्रीड़ा करता है, घर बनाकर राम और सीता, दोनोंको वहाँ रखकर लक्ष्मण नगरमें प्रवेश करता है ।।१-५॥
[५] प्रवेश करते ही उसे नगरके बाहर भटशवोंका भयंकर और विशाल समूह दिखाई देता है, जो शशि, शंख, कुन्द, हिम, दूध के समान धवल था । शिवके हार, हंस और शारदीय मेघके समान विमल था। उसे देखकर हर्षित सन लक्ष्मणने झीन एक गोपालसे पूछा-“यह महाप्रचण्ड क्या दिखाई देता है, मानो निर्मल हिमगिरि-शिखर खण्ड हो।" या. सुनकर गोपालने कहा- "हे देव, क्या यह बात आपने नहीं सुनी । अरिदमनकी जितपद्मा नामकी पुत्री है। दुर्नामकी तरह वह भट समूहका संहार करनेवाली है। घह आज भी वर-कुमारी है। जैसे वह प्रत्यक्ष कु-मारि ही आधी हो । उसके कारण जो योद्धा मरता है वह यहाँ डाल दिया जाता है; यह वही हड्डियोंका पहाड़ है। जो नर अपनी अवहेलना कर और तिनकेके बराबर समझते हुए