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तीसमो संधि था, जो विटरूपी भ्रमरोंसे परिधुम्धित था, सज्जनरूपी निर्मल जलसे अलंकृत था, दुष्ट वचनरूपी सघन कीचड़से पंकिल था जिसमें कामिनियोंके चंचल मनरूपी मत्स्य उछल रहे थे, जो नरवररूपी सैकड़ों हंसोंसे अपरित्यक्त था, ऐसे नस नगररूपी सरोवरमें वे अजेय, दिशागजकी तरह लीलापूर्वक धुसे । कामिनी रूपधारी आभूषण पहने हुए और हँसमुख वे गये और वहाँ पहुँचे जहाँ प्रतिहार था । वे कहते हैं-'हम भरतके चारण है इस प्रकार कहो कि जिससे वह प्रवेश दे दे ॥१-९॥ ___[५] यह वचन सुनकर प्रतिहार चला गया। उसने युद्ध में अजेय राजासे निवेदन किया, "हे स्वामी ! ये गानेवाले आये हुए हैं, स्पष्ट रूपसे मनुष्य रूपमें हैं, मैं नहीं जानता कि ये क्या विद्याधर हैं ? क्या गन्धर्व हैं कि या किन्नर हैं ? अत्यन्त सुन्दर स्वरकाले जनमनका मोहन करनेवाले और मुनिवरोंके भी मनोंको क्षुब्ध करनेवाले ।" यह वचन सुनकर राजाने कहा-'उन्हें प्रवेश दो' ! प्रविहार सन्तुष्ट होकर दौड़ा, पुलकित शरीर यह कहता हुआ कि प्रवेश करिए | यह शब्द सुनकर वे लोग इस प्रकार चले मानो दसों दिशापथ एक जगह मिल गये हो । जो शत्रुरूपी वृक्षोंसे सघन था, सिंहासनरूपी गिरिवरसे मण्डित था, जो प्रौढ़ विलासिनीरूपी लताओंसे प्रचुर था, वररूपी बेलफलसे युक्त था तथा अति वीर्यरूपी सिंह से मदित था ऐसे उस राजाके दरवाररूपी बनमें उन्होंने प्रवेश किया॥१-८||
[६] उस वैसे शत्रु-दरबाररूपी वनमें सिंहकी तरह वे एक क्षणमें घुस गये। नन्दावत के राजाको उन्होंने इस प्रकार देखा जैसे नक्षत्रोंके बीच चन्द्रमा हो। अप्रजने नृत्य प्रारम्भ कर दिया, जो सुकलत्रकी सरह सबल (मोड़-राम सहित), और सलक्षण (लक्षण-लक्ष्मण सहित) था। सुरतके समान बन्ध और