________________
-
-----
छम्वीसमो संधि हो, उस जलक्रीड़ामें युषा नरनारी क्रीड़ा करते हैं और वेवलीलासे स्नान करते हैं। हाथोंकी अंगुलियोंसे पानी उछालते है; क्या मृदंग वायके आधात दिखाते हैं, स्खलित होते हुए, मुड़ते हुए--अभिनव गीतों, बन्धों, काम-कटाक्षके नाना भेदों, छन्दों, तालों, अनेक लयों और भंगों, इन्द्रियोंको सींचनेवाले प्रकारोंके द्वारा। वह जलक्रीड़ा पुष्कर-युद्धको (१) तरह चोखी, सराग, सलक्षण ( लक्षणसहित-लक्ष्मणसहित) और श्रृंगारभारको दिखानेवाली थी ॥१-९॥
[१६] जलमें जय-जय शब्दोंके साथ लोगोंने स्नान किया, फिर राम और लक्ष्मण बाहर निकले। इसी बीच युद्ध में समर्थ, तथा जिसने सिरको झुकाते हुए और हाथकी अंजली बाँधी हैं, ऐसे प्रधान नलकूबर राजाने शरीर पोंछनेके लिए वस्त्र देकर, उन तीनोंको प्रच्छन्न भवनमें प्रवेश कराया, और स्वर्णपीठपर उन्हें बैठाया। उन्हें विस्तृत भोजन परसा गया, जो सुकलत्रकी तरह इच्छाका खण्डन नहीं करनेवाला था, राज्यके समान जो पट्टसे विभूषित था, तूर्यके समान थालसे अलंकृत था, सुरतके समान सरस और सतिम्मण ( आर्द्रता और कढ़ी सहित ) था । व्याकरणके समान व्यंजन ( पकवान और व्यंजन वर्ण ) से सहित था। उन्होंने अपनी इच्छासे उस भोजनको किया मानो विश्वनाथने पारणा की हो। उन्हें लेप और देवांग वस्त्र दिये गये, जो सालंकार ( अलंकार सहित ) थे, मानो कविके द्वारा रचित श्रुति शास्त्र हो ॥१-९॥
[१७] उन तीतोंने देवांग वस्त्र पहन लिये जो समुद्रके जलकी तरह वहल तरंगों ( बहुत लहरों-बहुत रेखाओं ) वाले थे, जिनवचनोंकी तरह, जो कठिनाईसे प्राप्त होते थे, ईख वनकी तरह जो प्रसरितपट्ट ( जिनका पट्टा-विस्तार कैला है ) थे, आस्थानकी तरह, जो दीर्घ छेद (सीमा और छेद ) वाले थे,