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सत्तबीसमो संधि यह गर्जना की गयी है ।" ॥१-१०॥
[८] हे राजन्, सुनो असुरको परास्त करनेवाले बलभद्र और पासुदेवके जो चिह्न हैं, वे सब चिह्न, जिनका महायश देव भवनमें उछल रहा है, ऐसे इन वनवासियों में हैं। एकका शरीर चन्द्रमाके समान धबल है, दूभरेका नीलकमल और मेघके समान श्याम है। एकके चरण धरतीके लिए मानदण्ड हैं, दूसरेके दुर्दम दानवोंका बलन करनेवाले हैं। एक शरीर मध्यमें कुश है, दूसरेका शरीर कमलोसे विभूपित है। एकका वक्षस्थल सीतासे झोभित हैं, दूसरेका पक्षास्थल सीता (लक्ष्मी) से अनुगृहीत है, एकके पास भयंकर बज और हल है, दूसरेके पास अतुलबल धनुष है। एकका मुख चन्द्रमा और कुन्दके समान उज्ज्वल है; दूसरेका नयघनके समान श्यामल है। यह वचन सुनकर बिगतमद उत्सरहीन बह बिना रथके गया, और अलभद्रके चरणों में उसी प्रकार गिर पड़ा, जिस प्रकार इन्द्र जिनेन्द्र के अभिषेकमें उनके चरणों में गिर पड़ता है ! ॥१-९।।
[९] जब रुद्रमुक्ति चरणों में गिरा तो लक्ष्मपाका कोपानल बढ़ गया। धगधग करता हुआ, और थर-थर करता हुआ मारो-मारो कहता हुआ, मानो जैसे कलि कृतान्त हो । करतल पीटता हुआ, धरतीको रौंदता हुआ, विस्फारित नेत्र भयावह नेत्र, धरतीका मानदण्ड और शत्रुवलके लिए प्रचंड उसने इस प्रकार कहा कि हे देव, शत्रुको छोड़ दीजिए, जिससे इसको मारनेसे मेरी प्रतिक्षा पूरी हो सके ! वह वचन सुनकर अतुल घल बलभद्र इस प्रकार बोले कि जो शस्त्रोको छोड़कर चरणों में आकर गिरता है, उसके मारनेसे किस यशकी निष्पत्ति होगी ॥१-२||
[१०] रामके मना करनेपर लक्ष्मण रह गया, मानो वर गजेन्द्र महावतके द्वारा रोक दिया गया हो, मानो सागर मर्यादासे