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भवावीसमो संधि महागजपर चढ़कर मानो प्रीष्म नराधिपके ऊपर ( आक्रमण के लिए) सनद्ध हो ॥१-२||
२] जब पावस राजा गरजा तो ग्रीष्म के द्वारा मुक्त धूलिसमूह जाकर मेघसमूहसे जा लगा। उसे बिजलीरूपी तलदारों के नशा से महकर दिया गया। यह विशाल धूलि समूह जब उलटा मुँह कर चला, तो उष्मकाल, 'मारो' कहता हुआ उठा धक-धक-धक करता हुआ वह दौड़ा । हस-ड्स-हस करता हुआ पहुँचा । जल-जल-जल करते हुए चलता हुआ, ज्वाला. बलियाँ और चिनगारियाँ छोड़ता हुआ, धूमावलिके वजदण्डको उठाकर श्रेष्ठ वातोलिकी तलवारको निकालकर, झड़-झड़झड़ करते हुए प्रहार कर तरुवररूपी भट समूहको मग्न करते हुए मेधरूपी महागजकी घटाको विघटित करते हुए, उष्णकालको जब लड़ते हुए देखा तो बिजलीकी टंकारका विस्तार दिखाते हुए पावसने अपना धनुप चढ़ा लिया। मेघरूपी गजघटाको प्रेरित कर उसने तुरन्त जलरूपी तीरपंक्ति छोटी ॥१-९॥
[३] जलके बाणवजोंके आघातोंसे घायल होकर प्रीष्मरूपी नरेश्वर युद्धमें धराशायी हो गया । उसके पतनसे मैंढक मानो सज्जनोंकी भाँति टर्र-टर्र करने लगा। मयूर नाचने लगे मानो दुष्ट दुर्जन हों। आनन्दसे नदियाँ भर उठी मानो कवि आनन्दसे किलकिला रहे हों। मानी कोयल उद्घोषसे मुक्त हो गयी, मानो मयूर परितोषसे बोल रहे हैं, मानो सरोवर वधुओंके अश्रुजलोंसे आई हो उठे हैं, मानो गिरिवर हर्षसे पुलकित हो उठे। मानो वियोगसे दावानल शान्त हो गया। मानो घरती विविध विनोदोंसे नाच उठी। मानो दिवाकर दुःखसे अस्त हो गया । मानो रात्रि सुखसे प्रवेश कर रही हो । पेड़ लाल पत्तोंवाले हो गये और हवासे प्रकम्पित हो उठे