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समोसमोसा
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सत्ताईसवी सन्धि तब असुरोंका विनाश करनेवाले, देवोंके लिए भयंकर सागरावर्त और बनावत धनुष धारण करनेवाले, युद्ध में अजेय लक्ष्मण और राम मानो मत्त महागजकी सरह विन्ध्याचल पर्वतके लिए गये।
[१] इसी बीच उन्हें नर्मदा नदी दिखाई दी, नदी जो कि जनोंके मनों और नेत्रोंको आनन्द देनेवाली थी, जिसके दोनों घट गनों और मगरोंकी दूबोंसे आहत थे, मानो उनपर तड़-तड कर वनाधात हो रहा था; आघातके भयंकर शब्दसे जो भयसे व्याप्त थी। जिससे भयके कारण डरे हुए चक्रवाक और अश्व भाग रहे थे, जिसमें घोड़े हिनहिना रहे थे और मच गज गरज रहे थे। गजवर अनवरत रूपसे मद छोड़ रहे थे जिसमें मदसे मुक्त और मिश्रित मधु बह रहा था। उसपर भ्रमर गुनगुनाते थे और मिलते रहे थे। उसपर गन्धों का प्रवाहे-समूह दौड़ रहा था। गणोंकी अंजलियाँ भरी हुई थीं और वे तुष्ट मन थे। बैल मधुर ढेक्कारकी आवाज कर रहे थे, उनके सींगोंका समूह श्रेष्ठ कमलोंसे अंचित था। केशरके दल ( पराग )में प्रविष्ट हो चुके थे; केशर जो कि केवल जिनेश्वरके लिए ले जायी जाती है। तो सीता देवीके साथ श्रीराम, लक्ष्मण
और लोग पानी में उतरे मानो उपकार कर शासनदेवताके समान नर्मदा नदी ने उन्हें तार दिया ॥१-९।। ___ [२] थोड़ी दूर चलनेपर भुवनकी शोभा विन्ध्याचल रामको दिखाई देता है। इरिणप्रभ, शशिप्रभ, कर्णप्रभ, पृथुलप्रभ, निष्प्रभ और क्षीणप्रभ भी। जो विन्ध्याचल मृदंगकी तरह सताल ( ताड़वृक्ष--ताल ) सधर (वंश और कुटुम्ब ) वृषभकी तरह, ससिंग (सींग और शिखर सहित); महन्तडर