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छब्बीसमो.संधि [१०] दोनों वीर एक ही आसनपर बैठ गये-वैसे ही जैसे सूर्य और चन्द्र आकाशके आँगनमें। एक प्रचण्ड तीन खण्ड धरतीका राजा था, दूसरा कूबर नगरका राना था। एकके घरणकमल कछुएकी तरह उन्नत थे, दूसरेके चरणकमल रक्तकमलकी तरह थे। एकके दोनों ऊर विस्तृत थे, दूसरेके नवनीतकी तरह सुकुमार थे। एकका सिंहकी तरह कटिमण्डल था, जबकि दूसरेका नारीनितम्बके समान था। एकका शरीर सुन्दर और सुललित था, जबकि दूसरेका शरीर त्रिवलीरूपी लहरोंसे ( रेखाओंसे) युक्त था। एकका चिकट वक्षःस्थल शोभित था, जबकि दूसरेका स्तनचक्रोंसे युक्त यौवन था। एक की बाँह लम्बी और विशाल थीं, जब कि दूसरेकी मानो मालतीकी मालाएँ थीं। एकका मुखरूपी कमल खिला हुआ था, जबकि दूसरेका पूर्णिमाके चन्द्रमाके समान सुन्दर था। एकके नेत्रकमल बिखरे हुए थे, जबकि दूसरेके अनेक विभ्रमोंसे भरे हुए थे। एकका सिर श्रेष्ठ कुसुमोंसे सुवासित था, जबकि दूसरेका सिर श्रेष्ठ मुकुदसे विभूपित था । एक लक्षणों सहित, अशेष जनके द्वारा लक्षित किया गया, जबकि दूसरा पुरुषरूपमें प्रच्छन्न स्त्री था ॥१-१२॥
[११] दानवरूपी दुष्टग्रहके प्रह अर्थात लहमणका अवगाइन करनेवाले कूचरनरेशने लक्ष्मणरूपी सरोवरको तिरछे नेत्रोंसे देखा कि जो देवस्त्रियोरूपी कलिनियोंके लिए अत्यन्त सुन्दर था । जो कस्तूरीरूपी कीचड़से पंकिल था, जो शत्रुरूपी गजोंके द्वारा विलोड़ित नहीं किया जा सकता था । जो देवरूपी हजारों पक्षियोंसे मण्डित था, जो कामिनियोंके स्तनरूपी चक्र ( चक्रवाकों) से चढ़ा हुआ था। वहाँ उस सरोवरमें स्वेदरूपी जलसे आने लक्ष्मणका मुखरूपी कमल खिला हुआ था; जो कण्ठरूपी सुन्दर मृणालवाला था, उत्तम