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छबीलमो संधि
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आनन्द देनेवाले उसका रूप देखकर राजाका मन हलचलों से युक्त हो गया। वह कामके धनुषको धारण नहीं कर सका । कामदेव दस स्थानों (दसों अवस्थाओं ) से आ पहुँचा। पहली अवस्था में वह किसी समान व्यक्तिले बात नहीं करता, दूसरी में लम्बे निःश्वास छोड़ने लगता है, तीसरीमें सारे अंग सन्तप्त हो उठते हैं, चौथोमें जैसे करपत्रसे काटा जा रहा हो, पाँचवोंमें बार-बार पसीना आने लगता है, छठी में बार-बार मूर्च्छा आने लाती है, सातों जल या जलसे गाला कपड़ा अच्छा नहीं लगता, आठवीं में वह मृत्युलीला दिखाता है; नौवीं में जाते हुए प्राणोंको नहीं जानतो; दसवी में फटते हुए सिरको नहीं जानती । कामदेव इस प्रकार दसों अवस्थाओंसे बढ़ गया । आश्चर्य यही था कि जो कुमारको प्राणोंने नहीं छोड़ा ||१-९॥
[९] जब कुमार के प्राण कण्ठस्थित रह गये, तो संज्ञा (चेतना) आनेपर कुमारने कहा - "पथिकको बुलाओ ।" प्रभुकी आलासे पथिक दौड़े और आधे पलमें उसके पास पहुँच गये । तीन खण्डकी धरती के स्वामी उससे कहा, "तुम्हें राणा किसी कारण बुला रहे हैं"। यह सुनकर त्रिभुवनके जनोंके मन और नेत्रोंको आनन्द देनेवाला लक्ष्मण इस तरह चल पड़ा, मानो विकट पदसमूह रखता हुआ सिंह हो । भारसे आकान्त घरती काँप उठती है। कुमारने कुमारको आते हुए देखा, फामदेव के समान जनमनको मोहित करते हुए । एक क्षणमें कल्याणमाला रोमांचित हो उठी, नटकी तरह वह हर्ष - विषादसे नाच उठी । फिर लक्ष्मणको उसने आघे आसनपर बैठाया जैसे भव्य जीव जिनशासन में दृढ़तासे स्थित हो । विशेष सुन्दर मंचपर जनार्दन बैठ गया जैसे प्रच्छन्न नव वरण करनेवाले के समान कन्याके साथ मिल गया ||१-५९॥