________________
छग्वीसमो संधि वाले लक्ष्मण, तुम कहीं भी पानीकी खोज करो, कि जो सजनके हृद्यकी तरह निर्मल हो। दूर तक चलनेके कारण सीता प्याससे पीड़ित है, और हिमसे आहत नवकमलिनीकी तरह कान्तिहीन हो गयी हैं।" यह सुनकर वह पदवृक्षकी सीढ़ियोसे उसी प्रकार चढ़ गया जिस प्रकार महामुनि गुणस्थानों के द्वारा चढ़ जाते हैं ! वहाँ उसने नाना प्रकारले समोसे आच्छादित सुन्दर महासरोवर देखा, जो सारस, इंस, क्रौंच और बगुलोंसे चुम्बित था, तथा नवकुवलयदल और कमलोंसे अंकित था। उसे देखकर कुमार दौड़ा और एक पलमें इस सरोवरके तौरपर पहुँच गया। वह महाबली कमलसमह तोड़ता हुआ जलमें घुसा, मानो मानसरोवरमें महागज क्रीड़ा कर रहा हो ।।१-९॥
[७] जिस समय लक्ष्मण जलको आलोड़ित करते हैं तबतक कूवर नगरका राजा शीध्र वनक्रीड़ाके लिए निकलाकामदेव ( वसन्तपंचमी ) के दिन नरश्रेष्ठोंसे घिरा हुआ । वृक्षवृक्षपर मंच बांध दिये गये । मंच-मंचपर एक-एक व्यक्ति उपलब्ध कर दिया गया। मंच-संचपर नरेश्वर आरूढ़ हो गये, जैसे सुमेरु पर्ववके कटिबन्ध विद्याधर स्थित हो। मंच-मंचपर आलापिनी बज रही है, मधु पिया जाता है, हिंदोल राग गाया जाता है, मंच-मंचपर लोग हाथमें प्याला ( चसक) लिये थे, मंच-मंचपर मिथुन कौड़ा कर रहे थे। कहींपर नवमिथुन (नवदम्पति ) कहीं स्नेहसे हीन होते हैं ? मंच-पंचपर जनपद आन्दोलित था। जैसे ही कूबरनाथने मंचपर आरोहण किया, वैसे ही उसने लक्ष्मणको उसी प्रकार देखा, जिस प्रकार चन्द्रमाके द्वारा सूर्य देखा जाता है ॥१-९॥
[८] लक्षणोंसे भरे लक्ष्मणको उसने इस प्रकार देखा मानो साक्षात् कामदेव अवतरित हुआ हो। देवभवनको