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पंचवीसमरे संधि [८] जब राम, सीता और लक्ष्मणके द्वारा विश्वनाथ ( जिनेन्द्र ) देखे गये तो उन्होंने विविध वन्दनाओंसे उनकी थन्दना की, "असह्य परीषह सहन करनेवाले आपकी जय हो, अजेय कामका नाश करनेवाले आपकी जय हो, जन्मका नाश करनेताले सम्भवनाथ यापकी जय हो, नन्दिल चरण अभिनन्दन आपकी जय हो, सुमति करनेवाले आदरणीय सुमति आपकी जय हो, पद्म ( कमल ) की तरह सौरभ ( कीर्विवाले ) प्रवर पद्म नाथ आपकी जय हो, पुष्पोंसे अर्चित पुष्पदन्त आपकी जय हो, जिन्होंने शीतलसुखका संचय किया है ऐसे शीतलनाथ
आपकी जय हो; कल्याण करनेवाले श्रेयांस जिन आपकी जय हो; पूज्य चरण वासुपूज्य आपकी जय हो; पवित्रमुख आदरणीय विमलनाथ आपकी जय हो, अनन्त सुखवाले हे अनन्त स्वामी आपकी जय हो। हे धर्मधारण करनेवाले धर्म जिनेश्चर आपकी जय हो, हे शान्ति विधायक आदणीय शान्तिनाथ आपकी जय हो, जिनके चरण महास्तुतियोंसे संस्तुत हैं ऐसे कुन्थुनाथ आपको जय हो । महान् गुणोंसे विशिष्ट अर अरहन्त आपकी जय हो । बड़े-बड़े मल्लों (कामक्रोधादि)का नाश करनेवाले मल्लिनाथ आपकी जय हो। सुनवोंवाले शुद्ध मन हे सुबत आपकी जय हो।" इस प्रकार बीसों जिनवरोंकी वन्दना कर राम वहाँ बैठ जाते हैं। लेकिन लक्ष्मण इस भवन में प्रवेश करता है जहाँ कि सिंहोदर था !॥१-१२॥
[९] इतनेमें राज्यद्वारपर स्थिर और स्थूल बाहुवाला शब्दार्थ और देशीभाषामें कुशल प्रतिहार दिखाई दिया। प्रदेश करते हुए सुभटको उसने उसी प्रकार पकड़ लिया, जिस प्रकार अपनी मर्यादाके द्वारा लवण समुन्द्र पकड़ लिया जाता है। इससे विस्फुरित मुख वह वीर कुपित हो उठा। हाथ पीटता हुआ भयंकर नेत्र, शत्रसमुद्रका मन्थन करनेवाला वह अपने मनमें