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चवीसमो संधि दिये जो कुजन, कुग्राम (खोटे आदमी और गाँवकी तरह ) जड़त्वको धारण करनेवाले (जडहारिय) थे। कोई त्रिदण्डी थे और कोई धाहीस्वर (धाडीसर ) थे, जो कुपित राजाकी तरह, धाडसर (तीर्थ जानेवाले आक्रमणके लिए जोरसे चिल्लानेवाले थे। कोई त्रिशूल हाथमें लिये रुद्र थे, जो महावतकी तरह रुद्रांकुश (त्रिशूल और अंकुश ) लिये हुए थे। लक्ष्मण और रामसे विभूषित सीता देवी वहाँ प्रवेश करती हुई दोनों पक्षोंसे समान पूर्णिमाकी तरह दिखाई दीं ॥१२||
[१२] और भी थोड़ी दूर विहार करनेपर वे धानुष्कोंके वनमें पहुँचे, जो लोग मृगचर्म पहने हुए थे (मय-मत्थणियस्थउ), जिनके हाथ मयूरपंखोंसे प्रसाधित थे, जो कन्दमूल
और तरह-तरह के वनफल खानेवाले थे। जिनके सिरपर वटमाला थी और जो गलेमें गुंजाफल बाँधे हुए थे। जहाँ युवलियोंका शीघ्र विवाद हो जाता है उनकी बाँहें हाथी दाँतके वलयोंसे अंकित थीं। जो हाथियोंके मस्तकको असल बनाकर तथा धवलोज्ज्वल हाथीदाँतका मूसल लेकर मोतियोंके चावल कूटनेवाली थीं। कामसे विह्वल, जिनके मुख धुम्चित हैं। भीलोंके उस वनको राममे उलट-पुलट दिया ( बदल दिया)। अपने घरबारको छोड़कर, हर्षित शरीरवाले उन लोगोंने राम
और लक्ष्मणको उसी प्रकार आच्छादित कर लिया, जिस प्रकार मेघोंके द्वारा सूर्य-चन्द्र आच्छादित कर लिये जाते हैं ॥१-८॥
[१३] लक्ष्मण और पत्नी सीता सहित धनुर्धारी राम जैसे ही थोड़ी दूर जाते हैं तो उन्हें रूपवाले गोठ दिखाई दिये । कहींपर ढेक्का ध्वनि करते हुए कमलिनियोंके मृणाल दण्डोंके समूहको तोड़ते हुए बिना सींगोंके बछड़े थे, जो अत्यन्त प्रत्रजितों (संन्यासियोंके समान ) णीसंग (सींगोंसे रहित परिग्रहसे रहित) थे। कहींपर शिशिरकाल (फागुन) में जनपद इस प्रकार