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परमात्मप्रकाश
हेमचन्द्रकी अपभ्रंशका आधार शौरसेनीका परमात्मप्रकाशमें पता भी नहीं मिलता । इसके सिवा हेमचन्द्रकी अपभ्रंशकी और भी बहुतसी बातें परमात्मप्रकाशमें नहीं पाई जातीं ।
२ परमात्मप्रकाशके रचयिता जोइन्दु
___ योगीन्द्र नहीं, योगीन्दु जोइन्दु और उनका संस्कृत नाम-यह बडे ही दुःखकी बात है कि जोइन्दु जैसे महान अध्यात्मवेत्ताके जीवनके सम्बन्धमें विस्तृत वर्णन नहीं मिलता । श्रुतसागर उन्हें 'भट्टारक' लिखते हैं, किन्त इसे केवल एक
शब्द समझना चाहिये। उनके ग्रन्थोंमें भी उनके जीवन तथा स्थानके बारेमें कोई उल्लेख नहीं मिलता । उनकी रचनाएँ उन्हें आध्यात्मिक राज्यके उन्नत सिंहासनपर विराजमान एक शक्तिशाली आत्माके रूपमें चित्रित करती हैं । वे आध्यात्मिक उत्साहके केन्द्र हैं । परमात्मप्रकाशमें उनका नाम जोइन्दु आता है । जयसेन 'तथा योगीन्द्रदेवैरप्युक्तम्' करके परमात्मप्रकाशसे एक पद्य उद्धृत करते हैं । ब्रह्मदेवने अनेक स्थलोंपर ग्रन्थकारका नाम योगीन्द्र लिखा है । 'योगीन्द्रदेवनाम्ना भट्टारकेण' लिखकर श्रुतसागर एक पद्य उद्धृत करते हैं । कुछ प्रतियोंमें योगींद्र भी पाया जाता है । इस प्रकार उनके नामका संस्कृतरूप योगीन्द्र बहुत प्रचलित रहा है । शब्दों तथा भावोंकी समानता होनेसे योगसार भी जोइन्दुकी रचना मानी गयी है । इसके अंतिम पद्यमें ग्रंथकारका नाम जोगिचन्द्र लिखा है, किन्तु यह नाम योगीन्द्रसे मेल नहीं खाता । अतः मेरी रायमें योगीन्द्रके स्थानपर योगीन्दु पाठ है, जो योगिचंद्रका समानार्थक है । ऐसे अनेक दृष्टांत हैं, जहाँ व्यक्तिगत नामोंमें इंदु और चंद्र आपसमें बदल दिये गये हैं जैसे-भागेदु और भागचंद्र तथा शुभेंदु और शुभचंद्र । गलतीसे जोइंदुका संस्कृत रूप योगीन्द्र मान लिया गया और वह प्रचलित हो गया । ऐसे बहुतसे प्राकृत शब्द हैं जो विभिन्न लेखकोंके द्वारा गलतरूपमें तथा प्रायः विभिन्न रूपोंमें संस्कृतमें परिवर्तित किये गये हैं । योगसारके सम्पादकने इस गलतीका निर्देश किया था, किन्तु उन्होंने दोनों नामोंको मिलाकर एक तीसरे 'योगीन्द्रचंद्र' नामकी सृष्टि कर डाली, और इस तरह विद्वानोंको हँसनेका अवसर दे दिया । किंतु, यदि हम उनका नाम जोइन्दु-योगीन्दु रखते हैं, तो सब बातें ठीक-ठीक घटित हो जाती हैं ।
योगीन्दुकी रचनाएँ परम्परागत रचनाएँ-निम्नलिखित ग्रंथ परम्परासे योगीन्दुविरचित कहे जाते हैं- १ परमात्मप्रकाश (अपभ्रंश), २ नौकारश्रावकाचार (अप०), ३ योगसार (अप०), ४ अध्यात्मसंदोह (सं०), ५ सुभाषिततंत्र (सं०), और ६ तत्त्वार्थटीका (सं०) । इनके सिवा योगीन्द्रके नामपर तीन और ग्रंथ भी प्रकाशमें आ चुके हैं-एक दोहापाहुड (अप०), दूसरा अमृताशीति (सं०) और तीसरा निजात्माष्टक (प्रा०) । इनमेंसे नम्बर ४
और ५ के बारेमें हम कुछ नहीं जानते और नं०६ के बारेमें योगदेव, जिन्होंने तत्त्वार्थ-सूत्रपर संस्कृतमें टीका बनाई है, और योगीन्द्रदेव नामोंकी समानता संदेहमें डाल देती है ।
परमात्मप्रकाश परिचय-इस भूमिकाके प्रारंभमें इसके बारेमें बहुत कुछ लिखा जा चुका है । इसके जोइंदुविरचित होनेमें कोई संदेह नहीं हैं । यह कथन कि उनके किसी शिष्यने इसे संगृहीत किया था, ऊपर कहा जा चुका है । इस ग्रन्थमें जोइन्दु अपना नाम देते हैं और लिखते हैं कि भट्ट प्रभाकरके लिये इस ग्रन्थकी रचना की गई है । तथा श्रुतसागर, बालचन्द्र, ब्रह्मदेव और जयसेन जोइन्दुको इस ग्रन्थका कर्ता बतलाते हैं । यथार्थमें यह ग्रन्थ जोइन्दुकी रचनाओंमें सबसे उत्कृष्ट है, और इसीके कारण अध्यात्मवेत्ता नामसे उनकी ख्याति है ।
योगसार परिचय-योगसारका मुख्य विषय भी वही है जो परमात्मप्रकाशका है । इसमें संसारकी प्रत्येक वस्तुसे
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