Book Title: Parmatmaprakasha and Yogsara
Author(s): Yogindudev, A N Upadhye
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 464
________________ - दोहा २०० ] अथ परमात्मप्रकाशः केवल दंसणु णाणु सुह वीरिउ जो जि अनंतु । सो जिण-देउ वि परम-मुणि परम-पयासु मुणंतु ॥ १९९ ॥ केवलदर्शनं ज्ञानं सुखं वीर्य य एव अनन्तम् । स जिनदेवोऽपि परममुनिः परमप्रकाशं जानन् ॥ १९९ ॥ सो जिणदेउ वि स जिनदेवोऽपि एवं भवति । न केवलं जिनदेवो भवति । परममुणि परम उत्कृष्टो मुनिः प्रत्यक्षज्ञानी । किं कुर्वन् सन् । मुणंतु मन्यमानो जानन् सन् । कम् परमपयासु परममुत्कृष्टं लोकालोकप्रकाशकं केवलज्ञानं यस्य स भवति परमप्रकाशस्तं परमप्रकाशम् । सकः । केबलदंसणु णाणु सुह वीरिउ जो जि केवलज्ञानदर्शनसुखवीर्यस्वरूपं य एव । कथंभूतं तत् केवलज्ञानादिचतुष्टयम् । अनंतु युगपद्नन्तद्रव्य क्षेत्रकालभावपरिच्छेदकत्वादविनश्वरत्वाच्चानन्तमिति भावार्थः ।। १९९ ।। जो परमप्प परम पर हरि हरु बंभु विबुद्धु । परम पयासु भांति मुणि सो जिण - देउ विसुद्ध || २०० ॥ यः परमात्मा परमपदः हरिः हरः ब्रह्मापि बुद्धः । Jain Education International ३०३ परमप्रकाशः भणन्ति मुनयः स जिनदेवो विशुद्धः ॥ २०० ॥ भांति कथयन्ति । के ते मुणि मुनयः प्रत्यक्षज्ञानिनः । कथंभूतं भणन्ति परमपयासु परमप्रकाशः । यः कथंभूतः । जो परमप्पउ यः परमात्मा । पुनरपि कथंभूतः । परमप परमानन्तज्ञाना दिगुणाधारत्वेन परमपदस्वभावः । किंविशिष्टः । हरि हरिसंज्ञः हरु महेश्वराभिधानः बंभु वि परमब्रह्माभिधानोऽपि बुद्ध बुद्धः सुगतसंज्ञः सो जिणदेउ स एव पूर्वोक्तः परमात्मा फिर भी इसी कथनको दृढ करते हैं - [ केवलदर्शनं ज्ञानं सुखं वीर्यं ] केवलदर्शन, केवलज्ञान, अनंतसुख, अनंतवीर्य [ यदेव अनंतं ] ये अनंतचतुष्टय जिसके हों [ स जिनदेव: ] वही जिनदेव है, [ परममुनिः ] वही परममुनि अर्थात् प्रत्यक्षज्ञानी है । क्या करता हुआ ? [परमप्रकाशं जानन् ] उत्कृष्ट लोकालोकका प्रकाशक जो केवलज्ञान वही जिसके परमप्रकाश है, उससे सकल द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भावको जानता हुआ परमप्रकाशक है । ये केवलज्ञानादि अनंतचतुष्टय एक ही समयमें अनंतद्रव्य, अनंतक्षेत्र, अनंतकाल और अनंतभावोंको जानते हैं, इसलिये अनंत हैं, अविनश्वर हैं, इनका अंत नहीं है, ऐसा जानना ॥ १९९॥ आगे जिनदेवके ही अनेक नाम हैं, ऐसा निश्चय करते हैं - [ यः ] जिस [ परमात्मा ] परमात्माको [मुनयः] मुनि [परमपदः ] परमपद [ हरिः हरः ब्रह्मा अपि] हरि महादेव ब्रह्मा [बुद्धः परमप्रकाशः भांति ] बुद्ध और परमप्रकाश नामसे भी कहते हैं, [सः ] वह [विशुद्धः जिनदेवः] रागादि रहित शुद्ध जिनदेव ही है, उसीके ये सब नाम हैं | भावार्थ - प्रत्यक्षज्ञानी उसे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550