Book Title: Parmatmaprakasha and Yogsara
Author(s): Yogindudev, A N Upadhye
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 496
________________ ३३५ -190 : २-६० परमप्प-पयासु 179) गंथहँ उप्परि परम-मुणि देस वि करइ ण राउ । गंथहँ जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ॥ ४९ ॥ 180) विसयह उप्परि परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ । विसयह जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ॥ ५० ॥ 181) देहह उप्परि परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ। देहहँ जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ।। ५१ ॥ 182) वित्ति-णिवित्तिहि परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ । बंध हेउ वियाणियउ एयहँ जेण सहाउ ॥ ५२ ॥ 183) बंधहँ मोक्रवाँ हेउ णिउ जो णवि जाणइ कोइ । सो पर मोहिं करइ जिय पुण्णु वि पाउ वि दोइ ।। ५३ ।। 184) दंसणणाण-चरित्तमउ जो णवि अप्पु मुणेइ । मोक्खहँ कारणु भणिवि जिय सो पर ताइँ करेइ ॥ ५४ ॥ 185) जो णवि मण्णइ जीउ समु पुण्णु वि पाउ वि दोइ । सो चिरु दुक्खु सहंतु जिय मोहिं हिंडइ लोइ ॥ ५५ ॥ 186) वर जिय पावइँ सुंदर णाणिय ताइँ भणंति । जीवह दुक्खई जणिवि लहु सिवमइँ जाइँ कुणंति ॥५६॥ 187) मं पुणु पुण्ण भल्लाइँ गाणिय ताइँ भणति । जीवहँ रज्जई देवि लहु दुक्खइँ जाइँ जणंति ॥ ५७ ॥ 188) वर णिय-दसण-अहिमुहउ मरणु वि जीव लहेसि । मा णिय-दसण-विम्मुहउ पुण्णु वि जीव करेसि ॥ ५८॥ 189) जे णिय-दसण-अहिमुहा सोक्खु अणंतु लहंति । सिं विणु पुण्णु करंता वि दुक्खु अणंतु सहति.॥ ५९ ॥ 190) पुण्णेण होइ विडयो विहवेण मओ मएण मइ-मोहो । मइ-मोहेण य पावं ता पुण्णं अम्ह मा होउ ॥ ६० ॥ 179) Wanting in TRM. 180) Wanting in TKM%B C बंधहु हेउ for विसयहं जेण. 181) Wanting in TKM. 182) Wanting in TKM; Brahmadēva has an alternative reading for the 2nd line भिण्णउ जेण वियाणियउ एयह अप्पसहाउ. 183) A णिरु for णिउ ; TKM मोहे...जिउ, लोइ for दोइ. 184) ABC सिद्धिहि कारणि ; TKM मुणवि for भणिवि 185) B जीव सम; c दोवि, TRM बेइ ; TKM मोहि. 186) TKM जणेइ for जणिवि ; Bc सिवगइ. 187) TKM रजुइ ..लहुं. 188) TM णियदसणे, सहेसि for लहेसि (B लहीसि); TKM में for मा; BTKM करीसि. 189) AC सुक्खु ; TKMB तें; B करताहं, TKM करेंताई. 190) Wanting in Bc ; TKM अइमोहो । अइमोहेण वि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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