Book Title: Parmatmaprakasha and Yogsara
Author(s): Yogindudev, A N Upadhye
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 513
________________ ३५२ उदयहं आणिवि कम्मु उव्वलि चोप्पडि उब्वस वसिया जो एक्कु करे मण बिण्णि एक्कु जमेल ए पंचिदियकरडा एमई दम्बई एहि जुत एहु जो अप्पा एडु बहारें कम्मई दिडपणकम्मणिवद्ध वि कम्मणिबद्ध वि कम्महं केरा भावडा कम्महि जासु कम्मु पुरकि सो करि सिवसंगमु काऊ णागरू काय किसे पर कारणविरहिउ कालु अणाइ अणाइ कालु मुजिहि कालु लहेविणु किवि भणति केण वि अप्पर केवलणाणि अणवरत केवलदंसणणाणमड केवलदंसणाणमय केवलदंसणु णाणु गउ संसारि गयणि अनंति गंथहं उप्पर घरबास मा जाणि घोष करंतु वि घोरु ण चिण्णउ Jain Education International 321 285 298 238 265 271 153 25 312 তana 61 80 36 50 75 49 168 283 243 164 55 280 148 87 51 221 334 24 6 337 9 38 179 281 329 305 जोइंदु - बिरइड अ. दो. २-१८३ २-१४८ २-१६० २-१०७ २-१३१ २-१३६ २-२६ १-२५ २-१७४ १-६० १-७८ १-३६ १-४९ १-७३ १-४८ २-३९ २-१४६ २-१११०२ P - २-३६.१ १-५४ २-१४३ २ -२१ १-८५ १-५० २-९० २-१९६ १-२४ १-६ २-१९९ १- ९ १-३८ २-४९ २-१४४ २-१९१ २-१६७ चदुक्ख चहहि पहि चाची हिं छिज्जर भिज्जर जइ इच्छसि भो जड़ जिय उत्तमु जई णिविसदु जणणी जणणु वि जम्मणमरण विवज्जिड जलसिंचणु पर्याणिद्दलणु जमु अभंतरि जसु परम जसु हरिणच्छी जहिं भावइ तर्हि जहिं मह तहि जं जह थक्कर जं नियदव्य जं णियबोह जं तत्तं णाणरूवं जंबो ववहार जं मई कि पि विजंपियड जं मुनि शहर जं सिवदंसणि जाणवि मण्णवि जा णिसि सयलहं जामु सुहासुहभावडा जोवड पाणिउ जासु ण कोहुण जासु ण धारणु जासु ण वण्णु ण जिउ मिच्छत्ते जिणि वत्थि जेम जित्धु ण इंदिय जिय अणुमित्तु वि जीउ वि पुग्गल जीउ सचेयणं For Private & Personal Use Only 10 220 219 74 244 131 248 85 341 250 41 46 123 200 114 156 115 206 352 141 351 119 118 157 176 332 170 20 22 19 81 317 28 254 149 144 अ. दो. १-१० २-८९ २-८८ १-७२ २-१११०३ २-४ १-११४ १-८३ २–२०३ २-११६ १-४१ १-४६ १-१२१ २-७० १-११२ २- २९ १-११३ २-७५ २-२१३ २-१४ २-२१२ १-११७ १-११६ १-३० २-४६*१ २-१९४ २-४१ १-२० १-२२ १-१९ १-७९ २-१७९ १-२८ २-१२० २–२२ २-१७ www.jainelibrary.org

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