Book Title: Parmatmaprakasha and Yogsara
Author(s): Yogindudev, A N Upadhye
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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३५४
-परमात्मप्रकाश:
णियमणि णिम्मलि णियमें कहियउ णेयाभावे विल्लि
124 155
अ. दो. १-१२२ २-२८ १-४७
48
191 192
14 233 181
अ दो. २-६१ २-६२ १-१४ २-१०२ २-५१ १-७०
172
84
२-४३ १-८२ २-११४ २-७६ १-५७ १-१०२ २-८५
248 207
58 104 216
16 136 299 251
१-७१
देवहं सत्थहं देवहं सत्थहं...जो देहविभिण्णउ देहविमेयइं जो देहहं उप्परि देहहं उन्भउ देहहं पेक्खिवि देहादेवलि देहादेहहिं जो देहि वसंतु वि देहि वसंतु वि णवि देहि वसंतें देहु वि जित्थु देहे वसंतु वि
तत्तातत्तु मुणेवि तरुणउ बूढउ तलि अहिरणि वरि. तं णियणाणु जि तं परियाणहि दव्यु तारायणु जलि तित्थई तित्थु तिहुयणवंदिउ तिहयणि जीवहं तुट्टइ मोहु तडित्ति ते चिय धण्णा ते ते पुणु जीवहं ते पुणु वंद ते पुणु वंद ते बंदउं सिरिसिद्ध ते हउं वंदडं
303
१-३३ १-२९ १-४२ २-१६५ १-४४ २-१४५ १-३४
44
282 34
२-१६१ २-११७ १-६१
130
१-४
151
___4
5
०००
धम्महं अत्थहं धम्माधम्मु वि एक्कु धम्मु ण संचिउ धंधइ पडियउ
२-३ २-२४ २-१३३ २-१२१
267 255
१-२
79
142
143 147 150 184 138
277 353 331 327 239
64 276 253 193
दव्बई जाणइ दव्बई जाणहि दव्बई सयलई दध चयारि वि दसणणाणचरित्त दसणु णाणु अणंत दंसणु णाणु चरितु दसण पुन्छ दाणिं लब्भइ भोउ दाणु ण दिण्णउ दुक्खई पावई दुक्खहं कारणि दुक्खहं कारणु दुक्खहं कारणु मुणिवि दुक्खु वि सुक्खु दुक्खु वि सुक्खु देउ ण देउले देउ णिरंजणु देउलु देउ वि सत्थु
२-१५ २-१६ २-२० २-२३ २-५४ २-११ २-४० २-३५ २-७२ २-१६८ २-१५० १-८४ २-२७ २-१५३
169
१-७७ P-२-१४०*१
२-२१४ २-१९३ २-१८९ २-१०८ १-६३ २-१४० २-११९ २-६३ २-१३ २-१९ १-११ १-९२ २-६०
पज्जयरत्तउ जीवडर पण्ण ण मारिय परमपयगयाणं परमसमाहि धरेवि परमसमाहिमहासरहि परु जाणंतु वि पंच वि इंदिय पंचहं णायक पावहि दुक्खु महंतु पावें णारउ पेच्छइ जाणइ पुग्गल छविहु पुणु पुणु पणविवि पुण्णु वि पाउ वि पुण्णेण होइ विवो बलि किउ माणुसबंधहं मोक्खहं बंधु वि मोक्खु बभहं भुवणि बिणि वि जेण
162 202 306 287
86 154 290
65 163 125 203 264
140 146
२-१४७
284 183
66
२-३६ १-१२३ २-७३ २-१३०
230 166
२-९१ २-३७
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