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परमात्मप्रकाशः
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- दोहा १९७ ] ज्ञानेन । कथम् । अणवरउ निरन्तरम् । किंविशिष्टो भवति भगवान् । परमाणंदमउ वीतरागपरमसमरसीभावलक्षणतास्त्रिकपरमानन्दमयः । केन । णियमें निश्चयेन अत्र संदेहो न कर्तव्य इत्यभिप्रायः ।। १९६ ॥
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अथ
जो जिणु केबल - णाणमउ परमाणंद-सहाउ ।
सो परमप्प परम-परु सो जिय अप्प - सहाउ ॥ १९७ ॥
यः जिनः केवलज्ञानमयः परमानन्दस्वभावः ।
सः परमात्मा परमपरः स जीव आत्मस्वभावः ॥ १९७ ॥
जो इत्यादि । जो यः जिणु अनेकभव गहनव्यसनप्रापणहेतून कर्मारातीन् जयतीति जिनः । कथंभूतः । केवलणाणमउ केवलज्ञानाविना भूतानन्तगुणमयः । पुनरपि कथंभूतः । परमानंद सहाउ इन्द्रियविषयातीतः स्वात्मोत्थः रागादिविकल्परहितः परमानन्दस्वभावः सो परमप्प स पूर्वोक्तोऽर्हन्नेव परमात्मा परमपरु प्रकृष्टानन्तज्ञानादिगुणरूपा मा लक्ष्मीर्यस्य स भवति परमः संसारिभ्यः पर उत्कृष्टः इत्युच्यते परमश्रासौ परश्च परमपरः सो स पूर्वोक्तो वीतरागः सर्वज्ञः जिय हे जीव अप्पसहाउ आत्मस्वभाव इति । अत्र योऽसौ पूर्वोक्तभणितो भगवान् स एव संसारावस्थायां निश्चयनयेन शक्तिरूपेण जिन इत्युच्यते । केवलज्ञानावस्थायां व्यक्तिरूपेण च । तथैव च परमब्रह्मादिशब्दवाच्यः स एव तदग्रे स्वयमेव कथयति । निश्चयनयेन आगे पीछे नहीं जानता । सब क्षेत्र, सब काल, सब भावको निरंतर प्रत्यक्ष जानता है । जो केवली भगवान परम आनंदमयी हैं । वीतराग परमसमरसीभावरूप जो परम आनंद अतीन्द्रिय अविनाशी सुख वही जिसका लक्षण है । निश्चयसे ज्ञानानंदस्वरूप है, इसमें संदेह नहीं है ॥ १९६ ॥
आगे ऐसा कहते हैं, कि केवलज्ञान ही आत्माका निजस्वभाव है, और केवलीको ही परमात्मा कहते हैं - [ यः जिनः ] जो अनंत संसाररूपी वनके भ्रमणके कारण ज्ञानावरणादि आठ कर्मरूपी वैरी उनका जीतनेवाला वह [ केवलज्ञानमयः ] केवलज्ञानादि अनंत गुणमयी है [ परमानंदस्वभावः] और इंद्रिय विषयसे रहित आत्मिक रागादि विकल्पोंसे रहित परमानंद ही जिसका स्वभाव है, ऐसा जिनेश्वर केवलज्ञानमयी अरहंतदेव [ सः ] वही [ परमात्मा] उत्कृष्ट अनंत ज्ञानादि गुणरूप लक्ष्मीवाला आत्मा परमात्मा है । उसीको वीतराग सर्वज्ञ कहते हैं । [ जीव] हे जीव, वही [ परमपरः ] संसारियोंसे उत्कृष्ट है, ऐसा जो भगवान वह तो व्यक्तिरूप है, और [ स आत्मस्वभावः ] वह आत्माका ही स्वभाव है || भावार्थ-संसार अवस्थामें निश्चयनयकर शक्तिरूप विराजमान है, इसलिये संसारीको शक्तिरूप जिन कहते हैं, और केवलीको व्यक्तिरूप जिन कहते हैं । द्रव्यार्थिकनयकर जैसे भगवान हैं, वैसे ही सब जीव हैं, इस तरह निश्चयनयकर जीवको परब्रह्म कहो, परमशिव कहो, जितने भगवानके नाम हैं, उतने ही निश्चयनयकर विचारो तो सब जीवोंके
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