Book Title: Parmatmaprakasha and Yogsara
Author(s): Yogindudev, A N Upadhye
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 485
________________ ३२४ जोइंदु-विरइउ [55:१-५५55) कारण-विरहिउ सुद्ध-जिउ वड्ढइ खिरह ण जेण । चरम-सरीर-पमाणु जिउ जिणवर बोल्लहि तेण ॥ ५४॥ 56) अट्ठ वि कम्मइँ बहुविहइँ णवणव दोस वि जेण । सुद्धह एक वि अस्थि णवि सुण्णु वि वुच्चइ तेण ॥ ५५ ॥ 57) अप्पा जणियउ केण ण वि अप्पे जणिउ ण कोइ। दव्व-सहावे णिचु मुणि पज्जउ विणसइ होइ ॥५६॥ 58) तं परियाणहि दव्वु तुहुँ जं गुण-पज्जय-जुत्तु । सह-भुव जाणहि ताहँ गुण कम-भुव पज्जउ वुत्तु ॥ ५७ ॥ 59) अप्पा बुज्झहि दव्वु तुहुँ गुण पुणु दंसणु णाणु । पज्जय चउ-गइ-भाव तणु कम्म-विणिम्मिय जाणु ॥ ५८ ॥ 60) जीवहँ कम्मु अणाइ जिय जणियउ कम्मु ण तेण । कम्मे जीउ वि जणिउ णवि दोहि वि आइ ण जेण ।। ५९ ॥ 61) एह ववहारे जीवडउ हेउ लहेविणु कम्मु । बहुविह-भावे परिणवइ तेण जि धम्मु अहम्मु ॥ ६०॥ 62) ते पुणु जीवहँ जोइया अट्ठ वि कम्म हवंति । जेहि जि झंपिय जीव णवि अप्प-सहाउ लहंति ॥ ६१ ॥ 63) विसय-कसायहि रंगियहँ जे अणुया लग्गति । जीव-पएसह मोहियह ते जिण कम्म भणंति ॥ ६२ ॥ 64) पंच वि इंदिय अण्णु मणु अण्णु वि सयल-विभाव । जीवहँ कम्मइँ जणिय जिय अण्णु वि चउगइ-ताव ।। ६३ ॥ 65) दुक्खु वि सुक्खु वि बहु-विहउ जीवहँ कम्मु जणेइ। अप्पा देक्खइ मुणइ पर णिच्छउ एउँ भणेइ ।। ६४ ॥ 55) c सुद्ध जिउ ; K खिण्णइ, M खिणइ for खिरइ ; c पमाण ; c बुल्लहि TKM बोलिहिं. 56) TKM कम्मइ बहुविहइं, बुज्झइ for वुच्चइ. 57) ACTKM अप्पि ; Ac दव्वसहावि, TKM दब्बसहावे; TKA पज्जइ r पज्जउ ; c कोई, M सोइ for होइ. 58) AC परियाणहिं ; TKM दब्ब ; c पज्जइजुत्तु ; c सहभुय ; TKM गुणं, पज़य बुत्तु. 59) TKM बुज्झइ दब्बु जिय ( for तुहुं), पुण for पुणु ; c पुणु for तणु. 60) A कम्मु... जिया; c कम्मि, TKM कम्मे. 61) AC ववहारि, TKM ववहारे; AC बहुविहभावि, TKM भावे परिणमइ; TKM तेहि वि धम्माहम्मु for तेण जि etc.; c धम्माहम्मु. 62) TKM ते पुण जीवह ; T अट्ठ हि for अट्ट वि. TKM जेहि वि.63) TKM रेगियहि, रेजियहं; TKM जेयणुगा, अणुआ; TM पएसहि. रपयेसहि. in the commentary of Brahmadeva पएसिहि ; TK कम्मु for कम्म 64) c विभाउ, TKM सयल विभाउ: TKM जीवह कम्मे. 65) TK दुक्ख वि सोक्ख वि, M दुक्ख वि सोक्खु वि, c दुक्ख वि सुक्ख वि: c देषइ for देखइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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