Book Title: Parmatmaprakasha and Yogsara
Author(s): Yogindudev, A N Upadhye
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 483
________________ ३२२ जोइंदु-विरइउ [33:१-३३33) देहादेवलि जो वसइ देउ अणाइ-अणंतु । केवल-णाण-फुरंत-तणु सो परमप्पु णिभंतु ॥ ३३ ॥ 34) देहे वसंतु वि णवि छिवइ णियमे देहु वि जो जि । देहे छिप्पइ जो वि णवि मुणि परमप्पउ सो जि ॥ ३४ ॥ 35) जो सम-भाव-परिठियहँ जोइहँ कोइ फुरेइ । परमाणंदु जणंतु फुडु सो परमप्पु हवेइ ॥ ३५ ॥ 36) कम्म-णिबद्ध वि जोइया देहि वसंतु वि जो जि । होइ ण सयलु कया वि फुड मुणि परमप्पउ सो जि॥३६॥ 37) जो परमत्थेणिक्कलु वि कम्म-विभिण्णउ जो जि । मूढा सयलु भणंति फुड़ मुणि परमप्पउ सो जि ।। ३७ ॥ 38) गयणि अणंति वि एक उडु जेहउ भुयणु विहाइ । मुक्कहँ जसु पए बिवियउ सो परमप्पु अणाइ ॥ ३८ ॥ 39) जोइय-विदहि णाणमउ जो झाइज्जइ झेउ। मोक्खहँ कारणि अणवरउ सो परमप्पउ देउ ॥ ३९ ॥ 40) जो जिउ हेउ लहेवि विहि जगु बहु-विहउ जणेइ । लिंगत्तय-परिमंडियउ सो परमप्पु हवेइ ॥ ४०॥ 41) जसु अब्भंतरि जगु वसइ जग-अब्भंतरि जो जि । जगि जि वसंतु वि जगु जि ण वि मुणि परमप्पउ सो जि ॥ ४१ ॥ 42) देहि वसंतु वि हरि-हर वि जं अज्ज विण मुणंति । परम-समाहि-तवेण विणु सो परमप्पु भणंति ॥ ४२ ॥ 43) भावाभावहि संजुवउ भावाभावहि जो जि। देहि जि दिवउ जिणवरहिमुणि परमप्पउ सो जि ॥ ४३ ।। 33) TRA देहादेउळे जो वसयि, B देउलि ; A देउं अणाई. 34) A णियमि, TKM णियमे ; TKM जोजि for जो जि ; ABC देहिं ; TKM जोजि for जो वि, and सोजि for सो जि. 35) TKM समभावे; Bc जोडहि. TAM जोडह. 360 TKM देहे, जोजि and सोजि for जो जि and सो जि: c confuses the first Dada of 36 and 37, and loses doha No. 37. 37) TKM जोजि and सोजि: in the Mss. TEM जो जि and सो जि are uniformly written as जोजि and सोजि, so hereafter these variants will not be noted. 38) Wanting in TKM; Bc एक: AB भवणि, c भवणुः AC पइबिंबियउ, B पय: AB अणाई. 39) A जोइयविदह, B "विदहि, TKM बिदहि ; Bc कारणु. 40) TM विहि, K विहि ; लिंगता : TK 'परमंडियउ. 41) Wanting in TKM; C अभंतरु, AC जगु अभंतरि: hereafter many pages in B are rubbed and the letters cannot be read. 42) TKM देहे, जो for जं; c तवेणु विण सो परमप्प. 43) Wanting in TKM ; c संजुवहि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550