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-दोहा ९९]
परमात्मप्रकाशः केवलज्ञानं च लक्षणं भाषितम् । कैः जिनवरैः । तेण ण किज्जइ भेउ तहं तेन कारणेन व्यवहारेण देहभेदेऽपि केवलज्ञानदर्शनरूपनिश्चयलक्षणेन तेषां न क्रियते भेदः । यदि किम् । जह मणि जाउ विहाणु यदि चेन्मनसि वीतरागनिर्विकल्पस्वसंवेदनज्ञानादित्योदयेन जातः। कोऽसौ । प्रभातसमय इति । अत्र यद्यपि षोडशवर्णिकालक्षणं बहूनां सुवर्णानां मध्ये समानं तथाप्येकस्मिन् सुवर्णे गृहीते शेषसुवर्णानि सहैव नायान्ति । कस्मात् । भिन्न भिन्न देशवात् । तथा यद्यपि केवलज्ञानदर्शनलक्षणं समानं सर्वजीवानां तथाप्येकस्मिन् विवक्षितजीवे पृथक्कृते शेषजीवाः सहैव नायान्ति । कस्मात् । भिन्न प्रदेशवात् । तेन कारणेन ज्ञायते यद्यपि केवलज्ञानदर्शनं समानं तथापि प्रदेशभेदोऽस्तीति भावार्थः ॥ ९८ ॥ अथ शुद्धात्मनां जीवजातिरूपेणैकलं दर्शयति
घंभहँ भुवणि वसंताहँ जे णवि भेउ करंति । ते परमप्प-पयासयर जोइय विमलु मुणंति ।। ९९ ।। ब्रह्मणां भुवने वसतां ये नैव भेदं कुर्वन्ति ।
ते परमात्मप्रकाशकराः योगिन् विमलं जानन्ति ॥ ९९ ॥ बंभहं इत्यादि । बंभहं ब्रह्मणः शुद्धात्मनः । किं कुर्वतः। भुवणि वसंताहं भुवने त्रिभुवने वसतः तिष्ठतः जे णवि भेउ करंति ये नैव भेदं कुर्वन्ति । केन । शुद्धसंग्रहनयेन ते परमप्पपयासयर ते ज्ञानिनः परमात्मस्वरूपस्य प्रकाशकाः सन्तः जोइय हे योगिन् अथवा केवलदर्शन केवलज्ञान ये ही लक्षण हैं, ऐसा जिनेंद्रदेवने वर्णन किया है । इसलिये व्यवहारनयकर देह-भेदसे भी भेद नहीं है, केवलज्ञानदर्शनरूप निजलक्षणकर सब समान हैं, कोई भी बड़ा छोटा नहीं है । तेरे मनमें वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञानरूप सूर्यका उदय हुआ है, और मोह-निद्राके अभावसे आत्म-बोधरूप प्रभात हुआ है, तो तू सबोंको समान देख । जैसे यद्यपि सोलहवानीके सोने सब समान वृत्त हैं, तो भी उन सुवर्ण-राशियोंमेंसे एक सुवर्णको ग्रहण किया, तो उसके ग्रहण करनेसे सब सुवर्ण साथ नहीं आते, क्योंकि सबके प्रदेश भिन्न हैं, उसी प्रकार यद्यपि केवलज्ञान दर्शन लक्षण सब जीव समान हैं, तो भी एक जीवका ग्रहण करनेसे सबका ग्रहण नहीं होता । क्योंकि प्रदेश सबके भिन्न भिन्न हैं, इससे यह निश्चय हुआ, कि यद्यपि केवलज्ञान दर्शन लक्षणसे सब जीव समान हैं, तो भी प्रदेश सबके जुदे जुदे हैं, यह तात्पर्य जानना ॥९८॥
आगे जातिके कथनसे सब जीवोंकी एक जाति है, परंतु द्रव्य अनन्त हैं, ऐसा दिखलाते हैं-[भुवने] इस लोकमें [वसतः] रहनेवाले [ब्रह्मणः] जीवोंका [भेदं] भेद [ये] जो [नैव] नहीं [कुर्वति] करते हैं, [ते] वे [परमात्मप्रकाशकराः] परमात्माके प्रकाश करनेवाले [योगिन्] हे योगी, [विमलं] अपने निर्मल आत्माको [जानंति] जानते हैं । इसमें संदेह नहीं है ॥ भावार्थ-यद्यपि जीव-राशिकी अपेक्षा जीवोंकी एकता है, तो भी प्रदेशभेदसे प्रगटरूप सब जुदे जुदे
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