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श्री परमात्मने नमः श्रीमद् योगीन्दुदेव विरचितः परमात्मप्रकाश
(टीकाद्वयोपेतः)
श्रीमद् ब्रह्मदेवकृत भाषाटीका चिदानन्दैकरूपाय जिनाय परमात्मने ।
परमात्मप्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः ॥१॥ श्रीयोगीन्द्रदेवकृतपरमात्मप्रकाशाभिधाने दोहकछन्दोग्रन्थे प्रक्षेपकान् विहाय व्याख्यानार्थमधिकारशुद्धिः कथ्यते । तद्यथा-प्रथमतस्तावत्पश्चपरमेष्ठिनमस्कारमुख्यत्वेन 'जे जाया झाणग्गियए' इत्यादि सप्त दोहकसूत्राणि भवन्ति, तदनन्तरं विज्ञापनमुख्यतया 'भाविं पणविवि' इत्यादिसूत्रत्रयम् , अत ऊर्ध्व बहिरन्तःपरमभेदेन त्रिधात्मप्रतिपादनमुख्यत्वेन 'पुणु पुणु पणविवि' इत्यादिसूत्रपञ्चकम् , अथानन्तरं मुक्तिगतव्यक्तिरूपपरमात्मकथनमुख्यत्वेन 'तिहु
श्री पण्डित दौलतरामजीकृत भाषाटीका दोहा-चिदानंद चिद्रूप जो, जिन परमातम देव ।
सिद्धरूप सुविसुद्ध जो, नमों ताहि करि सेव ॥१॥ परमातम निजवस्तु जो, गुण अनंतमय शुद्ध ।
ताहि प्रकाशनके निमित, बंदूं देव प्रबुद्ध ॥२॥ 'चिदानंद' इत्यादि श्लोकका अर्थ-श्रीजिनेश्वरदेव शुद्ध परमात्मा आनंदरूप चिदानंदचिद्रूप है, उनके लिये मेरा सदाकाल नमस्कार होवे, किसलिये ? परमात्माके स्वरूपके प्रकाशनेके लिये । कैसे है वे भगवान ? शुद्ध परमात्मस्वरूपके प्रकाशक हैं, अर्थात् निज और पर सबके स्वरूपको प्रकाशते हैं । फिर कैसे हैं ? 'सिद्धात्मने' जिनका आत्मा कृतकृत्य है । सारांश यह है कि नमस्कार करने योग्य परमात्मा ही है, इसलिये परमात्माको नमस्कार कर परमात्मप्रकाशनामा ग्रंथका व्याख्यान करता हूँ।
श्रीयोगीन्द्रदेवकृत परमात्मप्रकाश नामा दोहक छंद ग्रंथमें प्रक्षेपक दोहोंको छोडकर व्याख्यानके लिये अधिकारोंकी परिपाटी कहते हैं-प्रथम ही पंच परमेष्ठीके नमस्कारकी मुख्यताकर 'जे जाया झाणग्गियए' इत्यादि सात दोहे जानना, विज्ञापनाकी मुख्यताकर ‘भाविं पणविवि' इत्यादि तीन दोहे, बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा, इन भेदोंसे तीन प्रकार आत्माके कथनकी मुख्यताकर 'पुणु पुणु पणविवि' इत्यादि पाँच दोहे, मुक्तिको प्राप्त हुए जो प्रगटस्वरूप परमात्मा उनके कथनकी
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