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-दोहा १]
परमात्मप्रकाशः जे जाया झाणग्गियएँ कम्म-कलंक डहेवि । णिच्च-णिरंजण-णाण-मय ते परमप्प णवेवि ॥१॥
ये जाता ध्यानाग्निना कर्मकलङ्कान् दग्ध्वा ।
नित्यनिरञ्जनज्ञानमयास्तान् परमात्मनः नत्वा ॥ १ ॥ __ जे जाया ये केचन कर्तारो महात्मानो जाता उत्पन्नाः। केन कारणभूतेन । झाणग्गियए ध्यानाग्निना । किं कृत्वा पूर्वम् । कम्मकलंक डहेवि कर्मकलङ्कमलान् दग्ध्वा भस्मीकृत्वा । कथंभूताः जाताः। णिच्चणिरंजणणाणमय नित्यनिरञ्जनज्ञानमयाः ते परमप्प णवेवि तान्परमात्मनः कर्मतापमानत्वा प्रणम्येति तात्पर्यार्थव्याख्यानं समुदायकथनं संपिण्डितार्थनिरूपणमुपोद्धातः संग्रहवाक्यं वार्तिकमिति यावत् । इतो विशेषः। तद्यथा-ये जाता उत्पन्ना मेघपटलविनिर्गतदिनकरकिरणप्रभावात्कर्मपटलविघटनसमये सकलविमलकेवलज्ञानाद्यनन्तचतुष्टयव्यक्तिरूपेण लोकालोकप्रकाशनसमर्थेन सर्वप्रकारोपादेयभूतेन कार्यसमयसाररूपपरिणताः । कया नयविवक्षया जाताः सिद्धपर्यायपरिणतिव्यक्तरूपतया धातुपाषाणे सुवर्णपर्यायपरिणतिव्यक्तिवत् । तथा चोक्तं पश्चास्तिकाये-पर्यायार्थिकनयेन "अभूदपुव्वो हवदि सिद्धो", द्रव्याथिकनयेन पुनः शक्त्यपेक्षया पूर्वमेव शुद्धबुद्धकस्वभावस्तिष्ठति धातुपाषाणे सुवर्णशक्तिवत् । हैं ये] जो भगवान [ध्यानाग्निना] ध्यानरूपी अग्निसे [कर्मकलङ्कान्] पहले कर्मरूपी मैलोंको [दग्ध्वा] भस्म करके [नित्यनिरञ्जनज्ञानमयाः जाताः] नित्य, निरंजन और ज्ञानमयी सिद्ध परमात्मा हुए हैं, [तान्] उन [परमात्मनः] सिद्धोंको [नत्वा] नमस्कार करके मैं परमात्मप्रकाशका व्याख्यान करता हूँ । यह संक्षेप व्याख्यान किया । इसके बाद विशेष व्याख्यान करते हैं-जैसे मेघपटलसे बाहर निकली हुई सूर्यकी किरणोंकी प्रभा प्रबल होती है, उसी तरह कर्मरूप मेघसमूहके विलय होनेपर अत्यन्त निर्मल केवलज्ञानादि अनंतचतुष्टयकी प्रगटतास्वरूप परमात्मा परिणत हुए हैं । अनंतचतुष्टय अर्थात् अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख, अनंतवीर्य, ये अनंतचतुष्टय सब प्रकार अंगीकार करने योग्य हैं, तथा लोकालोकके प्रकाशनेको समर्थ हैं । जब सिद्धपरमेष्ठी अनंतचतुष्टयरूप परिणमे, तब कार्य-समयसार हुए । अंतरात्म अवस्थामें कारणसमयसार थे । जब कार्यसमयसार हुए तब सिद्धपर्याय परिणतिकी प्रगटता रूपकर शुद्ध परमात्मा हुए । जैसे सोना अन्य धातुके मिलापसे रहित हुआ, अपने सोलहवानरूप प्रगट होता है, उसी तरह कर्म-कलंक रहित सिद्धपर्यायरूप परिणमे । तथा पंचास्तिकाय ग्रंथमें भी कहा है-जो पर्यायार्थिक नयकर 'अभूदपुब्बो हवदि सिद्धो' अर्थात् जो पहले सिद्धपर्याय कभी नहीं पाई थी, वह कर्मकलंकके विनाशसे पाई । यह पर्यायार्थिकनयकी मुख्यतासे कथन है, और द्रव्यार्थिकनयकर शक्तिकी अपेक्षा यह जीव सदा ही शुद्ध बुद्ध (ज्ञान) स्वभाव तिष्ठता है । जैसे धातु पाषाणके मेलमें भी शक्तिरूप सुवर्ण मौजूद ही है, क्योंकि सुवर्ण-शक्ति सुवर्णमें सदा ही रहती है, जब परवस्तुका संयोग दूर हो जाता है, तब वह व्यक्तिरूप होता है । सारांश यह है कि शक्तिरूप तो पहले ही था, लेकिन
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