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- दोहा ६५ ]
लक्षणपारमार्थिकवीतरागसौख्यात् प्रतिकूलं सांसारिकसुखदुःखं यद्यप्यशुद्धनिश्चयनयेन जीवजनितं तथापि शुद्धनिश्वयेन कर्मजनितं भवति । आत्मा पुनर्वीतरागनिर्विकल्पसमाधिस्थः सन् वस्तु वस्तुस्वरूपेण पश्यति जानाति च न च रागादिकं करोति । अत्र पारमार्थिक सुखाद्विपरीतं सांसारिकसुखदुःखविकल्पजालं हेयमिति तात्पर्यार्थः ॥ ६४ ॥
अथ निश्वयेन बंधमोक्षौ कर्म करोतीति प्रतिपादयति
परमात्मप्रकाशः
बंधु वि मोक्खु विसयलु जिय जीवहँ कम्मु जइ । अप्पा किंपि वि कुणइ णवि णिच्छउ एउँ भणेइ || ६५ || बन्धमपि मोक्षमपि सकलं जीव जीवानां कर्म जनयति ।
आत्मा किमपि करोति नैव निश्चय एवं भणति ॥ ६५ ॥
बंधु वि मोक्खु वि यलु जिय जीवहं कम्मु जणेइ बन्धमपि मोक्षमपि समस्तं हे जीव जीवानां कर्म कर्तृ जनयति अप्पा किंपि [ किंचि] वि कुणइ गवि णिच्छउ एवं भइ आत्मा किमपि न करोति बन्धमोक्षस्वरूपं निश्चय एवं भणति । तद्यथा । अनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण द्रव्यबन्धं तथैवाशुद्धनिश्चयेन भावबन्धं तथा नयद्वयेन द्रव्यभावमोक्षमपि यद्यपि जीवः करोति तथापि शुद्धपारिणामिकपरमभावग्राहकेन शुद्धनिश्चयनयेन न करोत्येव भणति । haisir | निश्चय इति । अत्र य एव शुद्धनिश्चयेन बन्धमोक्षौ न करोति स एव शुद्धात्मोपादेय इति भावार्थ: ।। ६५ ॥
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जीवने उपजाये नहीं है, इसलिये जीवके नहीं है, कर्म -संयोगकर उत्पन्न हुए और आत्मा तो वीतरागनिर्विकल्पसमाधिमें स्थिर हुआ वस्तुको वस्तुके स्वरूप देखता है, जानता है, रागादिकरूप नहीं होता, उपयोगरूप है, ज्ञाता द्रष्टा है, परम आनंदरूप है । यहाँ पारमार्थिक सुखसे उलटा जो इन्द्रियजनित संसारका सुख दुःख आदि विकल्प समूह है वह त्यागने योग्य है, ऐसा भगवानने कहा है, यह तात्पर्य है ॥६४॥
आगे निश्चयनकर बंध और मोक्ष कर्मजनित ही है, कर्मके योगसे बंध और कर्मके वियोगसे मोक्ष है, ऐसा कहते हैं - [ जीव] हे जीव, [ बंधमपि ] बंधको [ मोक्षमपि ] और मोक्षको [ सकलं ] सबको [जीवानां] जीवोंके [ कर्म] कर्म ही [ जनयति ] करता है, [ आत्मा] आत्मा [ किमपि ] कुछ भी [ नैव करोति ] नहीं करता, [ निश्चयः ] निश्चयनय [ एवं ] ऐसा [ भणति ] कहता है, अर्थात् निश्चयनयसे भगवानने ऐसा कहा है || भावार्थ - अनादि कालकी संबंधवाली अयथार्थस्वरूप अनुपचरितासद्भूतव्यवहारनयसे ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मबंध और अशुद्धनिश्चयनयसे रागादि भावकर्मके बंधको तथा दोनों नयोंसे द्रव्यकर्म भावकर्मकी मुक्तिको यद्यपि जीव करता है, तो भी शुद्धपारिणामिक परमभावके ग्रहण करनेवाले शुद्धनिश्चयनयसे नहीं करता है, बंध और मोक्षसे रहित है, ऐसा भगवानने कहा है । यहाँ जो शुद्धनिश्चयनयकर बंध और मोक्षका कर्ता नहीं, वही शुद्धात्मा आराधने योग्य है ||६५ ||
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