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प्रस्तावनाका हिंदी सार
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'पी' प्रति - यह प्रति जैनसिद्धान्त भवन आरा की है । इसपर लिखा है- 'परमात्मप्रकाश कर्नाटक टीकासहित' । यह कन्नड अक्षरोंमें लिखी गई हैं, इसमें कुक्कुटासन मलधारि बालचन्द्रकी कन्नडटीका है, यह कोई ५० वर्ष पूर्वकी लिखी हुई है । ब्रह्मदेवके मूलसे इसमें ६ पद्य अधिक हैं।
'क्यू' प्रति - यह प्रति भी आराके भवनकी हैं, इसमें भी एक कर्नाटकवृत्ति है, और लिखी भी कन्नड अक्षरोंमें है । यह ताडपत्रपर है, इसके प्रारम्भका एक पत्र खो गया है ।
'आर्' प्रति - यह भी ताडपत्रपर है, और आराके भवनकी है, इसमें केवल मूल परमात्मप्रकाश है और अक्षर कन्नड हैं ।
'एस' प्रति - जै० सि० भ० आराकी ताडपत्रकी इस प्रतिपर 'योगीन्द्र गाथा' लिखा है, यह करीब ७५ वर्ष पुरानी है । इसमें कन्नी अक्षरोंमें केवल दोहे ही लिखे हैं ।
'टी' प्रति-यह प्रति ताडपत्रपर है । और यह श्रीवीरवाणी विलास भवन मूडबिद्री से प्राप्त हुई थी । यह पुराने कन्नडी अक्षरोंमें लिखी हुई है । इसमें केवल दोहे ही हैं ।
'के' प्रति - यह भी मूडबिद्रीके वीरवाणीविलास - भवनकी प्रति है । हस्ताक्षरोंकी समानतासे यह स्पष्ट हैं कि 'टी' और 'के' प्रति एक ही लेखककी लिखी हुई हैं । इसकी लिपि पुरानी कन्नडी है ।
'एम् ' प्रति - इसमें भी केवल मूल ही है । इसका लेखक ताडपत्रपर लिखने में प्रवीण नहीं था । इसमें नं० १६ से २३ तक केवल आठ पत्र हैं। पहले पत्रमें 'मोक्षप्राभृत' पर बालचन्द्रकी कन्नडटीका है उसके बाद बिना किसी उत्थानिकाके परमात्मप्रकाशका दोहा लिखा है ।
इन प्रतियोंका परस्परमें सम्बन्ध - जोइंदुके मूलके दो रूप है, एक संक्षिप्त और दूसरा विस्तृत । 'टी' ‘के' और ‘एम्’ प्रति उसके संक्षिप्त रूपके अनुयायी हैं, और 'पी' 'ए' 'बी' 'सी' 'आर्' और 'एस्' उसके विस्तृत रूप के । ‘क्यू' प्रति 'ए' प्रति से मिलती है, किन्तु उस पर 'टी' 'के' और 'एम' के भी प्रभाव हैं । ‘आर’ प्रतिपर ‘ए’ ‘पी’ 'टी' 'के' और 'एम्' का प्रभाव है ।
५ योगसारकी प्रतियाँ
योगसारकी प्रतियोंका तुलनात्मक वर्णन- इस संस्करणमें मुद्रित योगसारका सम्पादन नीचे लिखी प्रतियोंके आधारपर किया गया है ।
'अ' - पं० के० भुजबल शास्त्रीकी कृपासे ज़ैनसिद्धान्त भवन आरासे यह प्रति प्राप्त हुई थी । इसमें दस पत्र हैं, जो दोनों ओर लिखे हुए हैं, केवल पहला और अन्तिम पत्र एक ओर ही लिखा है । सम्वत् १९९२ में देहलीके किसी भण्डारकी प्राचीन प्रतिके आधारपर आधुनिक देवनागरी अक्षरोंमें यह प्रति लिखी गई है । इसमें दोहे और उनपर गुजराती भाषाके टब्बे हैं, इसमें अशुद्धियाँ अधिक हैं ।
'प' - मुनि श्री पुण्यविजयजी महाराजकी कृपासे पाटणके भण्डारसे यह प्रति प्राप्त हुई थी । इसमें भी दोहे और उनका गुजराती अनुवाद है । यह अनुवाद 'अ' प्रतिके अनुवादसे मिलता जुलता है । यह प्रति बिल्कुल शुद्ध है और 'अ' प्रतिकी अशुद्धियोंका शोधन करनेमें इससे काफी सहायता मिली है, गुजराती अनुवाद (टब्बे) में इसका लेखन - काल सम्वत् १७१२ चैत्र शुक्ल १२ दिया है ।
‘ब’- बम्बईके पं॰ नाथूरामजी प्रेमीसे यह प्रति प्राप्त हुई थी । इसमें केवल दोहे ही हैं, देवनागरी अक्षरोंमें लिखे हैं । यह प्रति प्रायः शुद्ध है । इसके कमजोर पत्रों और टूटे किनारोंसे यह प्रति संपादनमें उपयुक्त चारों प्रतियोंमेंसे सबसे अधिक प्राचीन मालूम होती है । मालूम हुआ है कि माणिकचन्द्रजैनग्रन्थमालामें मुद्रित योगसारका सम्पादन इसी प्रतिके आधारपर किया गया है ।
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