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फिर भी इस मत से 'पालि' शब्द की व्युत्पत्ति पर कुछ प्रकाश नहीं पड़ता। अतः प्रस्तुत प्रसंग में वह हमारे लिये महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। - उपर्युक्त मतों के अलावा एक मत जर्मन विद्वान् डा० मैक्स वेलेसर ने सन् १९२४ और फिर १९२६ में प्रकाशित किया था। इस मत के अनुसार ('पाटलि' या 'पाडलि' (पाटलिपुत्र की भाषा) शब्द का ही संक्षिप्त रूप ‘पालि' है। चूंकि 'पालि' शब्द का प्रयोग भाषा-विशेष के अर्थ में अट्ठकथाओं तक में कहीं मिलता नहीं, अतः मैक्स वेलेसर का मत अपने आप गिर जाता है। डा० थॉमस द्वारा उसका पर्याप्त प्रतिवाद कर दिये जाने पर आज उसका कोई नाम नहीं लेता। यही भाग्य कुछ अन्य अल्प प्रसिद्ध मतों का भी हुआ है,जिनमें ऐतिहासिक सत्य की अपेक्षा उनके उद्भावकों का बुद्धि-वैचित्र्य ही अधिक दिखाई पड़ता है । इस प्रकार कुछ 'पल्लि' (गाँव) शब्द से ‘पालि' भाषा की उत्पत्ति बताकर उसे ग्रामीण भाषा बताना चाहते हैं, कुछ प्राकृत-पाकट-पाअड-पाअल-पालि इस प्रकार उसकी व्युत्पत्ति करना चाहते हैं, कुछ संस्कृत 'प्रालेय' या 'प्रालेयक' (पड़ोसी) शब्द से उसकी व्युत्पत्ति बताकर उसमें एक विशिष्ट ऐतिहासिक तथ्य की खोज करना चाहते हैं । यह सब अन्धकार ही अन्धकार है।
हाँ, 'अभिधानप्पदीपिका' के 'पालि' शब्द के महत्वपूर्ण अर्थ को लेकर हमें कुछ और विचार कर लेना चाहिये । 'पालि' शब्द को तन्ति ' (संस्कृत तन्त्र) 'बुद्धवचन' और 'पंक्ति' का समानार्थवाची मानते हुए इसकी व्युत्पत्ति वहाँ की गई है--"पा-पालेति रक्खतीति पालि' अर्थात् जो पालन करती है,रक्षा करती है, वह 'पालि' है। किसको पालन करती है ? किसकी रक्षा करती है ? स्पष्टतम उत्तर है बुद्ध-वचनों को। 'पालि' ने किस प्रकार बुद्ध-वचनों का पालन किया, किस प्रकार उनकी रक्षा की ? एक उत्तर है त्रिपिटक के रूप में उनका संकलन कर के,
१. इंडियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली, दिसम्बर १९२८ पृष्ठ ७७३; मिलाइये विटरनित्जः इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ६०५ (परिशिष्ट दूसरा); लाहाः पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ १८ (भूमिका); देखिये बुद्धिस्टिक स्टडीज (डा० लाहा द्वारा सम्पादित) पृष्ठ ७३०-३१ में डा०
कीय द्वारा मैक्स वेलेसर के मत का खण्डन भी। २. देखिये जहांगीरदार-कृत कम्पेरेटिव फिलॉलॉजी आँव दि इन्डो आर्यन
लेंग्वेजेज में पालि-सम्बन्धी विवेचन।