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या विकसित रूपों के साथ उसकी संगति लग जाती है, वह मत हमार वतमान ज्ञान की अवस्था में एक मान्य सिद्धान्त है। ___ 'पालि' शब्द की व्युत्पत्ति के विषय में तीसरा मत पं० विधुशेखर भट्टाचार्य का है। उनके मतानुसार 'पालि' शब्द का अर्थ 'पंक्ति' है और इस प्रकार वह संस्कृत 'पालि' शब्द का पर्यायवाची है। इस मत को पालि भाषा और साहित्य का भी कुछ समर्थन प्राप्त न हो, ऐसी बात नहीं है। प्रसिद्ध पालि कोश 'अभिधानप्पदीपिका (बारहवीं शताब्दी) में 'पालि' शब्द के 'बुद्धवचनं' अर्थ के साथ साथ 'पवित अर्थ भी दिया गया है। "तन्ति बुद्धवचनं पन्ति पालि"। पालि-साहित्य में 'अम्बपालि' 'दन्तपालि' जैसे प्रयोग भी ‘पालि' शब्द के 'पंक्ति' अर्थ को ही द्योतित करते हैं। अत: 'पालि' शब्द का अर्थ पंक्ति' और बाद में 'ग्रन्थ की पंक्ति' इस आधार पर कर लिया गया है और बुदृघोष द्वारा प्रयुक्त अर्थ के साथ उसकी संगति भी मिला ली गई है। किन्तु इस मत में दोष फिर भी स्पष्ट हैं। भिक्षु जगदीश काश्यप ने उसमें प्रधानतया तीन कमियाँ दिखाई हैं।' (१) 'पंक्ति' के लिये लिखित ग्रन्थ का होना आवश्यक है। त्रिपिटक प्रथम शताब्दी ईमवी पूर्व से पहले लिखा नहीं गया था। अतः उस समय के लिये त्रिपिटिक के उद्धरण के लिये 'पालि' या 'पंक्ति शब्द इस अर्थ में नहीं उपयुक्त हो सकता था। (२) 'पालि' शब्द का अर्थ यदि 'पंक्ति' होता तो उस अवस्था में उदान-पालि' जैसे प्रयोगों में 'उदानपंक्ति' अर्य करने से कोई समझने योग्य अर्थ नहीं निकलता (३) 'पालि' शब्द का अर्थ यदि पंक्ति होता तो अट्ठकथाओं आदि में कहीं भी उसका बहुवचन में भा प्रयोग दृष्टिगोचर होना चाहिये था, जो नहीं होता । अत: 'पालि' शब्द का 'पंक्ति' अर्थ उसके मौलिक स्वरूप तक हमें नहीं ले जा सकता। हाँ, भिक्षु जगदीश काश्यप ने जो आपत्तियाँ उठाई हैं, उनमें से प्रथम के उत्तर में आंशिक रूप से यह कहा जा सकता है कि त्रिपिटक की अलिखित अवस्था में पालि' या 'पंक्ति' शब्द से तात्पर्य केवल शब्दों की पठित पक्ति से लिया जाता रहा होगा और उसके लेखबद्ध कर दिये जाने पर उसकी लिखित पंक्ति ही ‘पालि' कहलाई जाने लगी होगी। श्रीमती राययस डेविड्स ने इसी प्रकार का मत प्रकाशित किया है।
१. पालि महाव्याकरण, पृष्ठ आठ (वस्तुकथा) २. देखिये उनका शाक्य और बुद्धिस्ट ऑरीजिन्स, पृष्ठ ४२९-३०