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ओसवाल जाति का इतिहास
बहुत बड़ा हाथ था। यह बात महाराजा मानसिंहजी ने अपने एक खास रुक्के में स्वीकार की हैं। हम उस रुक्के की नकल यहाँ पर देते हैं।
श्री नाथजी
सिंघवी गुलराज, मेघराज कुशलराज सुखराज कस्य सुप्रसाद बांचजो तथा थे बाबोजी तथा भामोजीरा स्याम घरमी चाकर हो सो हमारे मांने जालौर रा किला हुँ शहर पधराया ने जोधपुर रो राज सारो माने करायो ओ बंदगी थारी कदे भूलसां नहीं मारी सदा निरन्तर मरजी रेसी थारी बख्शी गिरी ने सोजत सिवाणा री हाकिमी ने गांव बीजवों बराड़ ने सुरायतो पढे है जणा में कदेही तफावत पाड़ां में ने मारा बंसरो होसी थांसु ने थारा बंस हुँ तफावत करे तथा मैं थाने कैद ही कैद करां तो श्री जलंधरनाथ धरम करम विच्चे के ओ नवासरे राह तांबापत्र नँ इनायेत कियो है थे बड़ा महाराज तया भाभेजी रा स्याम धरमी हो जणी में अणी रुक्का में लिख्यो है जण में आखरी ही और तरे जणी तो ऐ बिचे लिखी या इष्टदेव लगायत एक बार नहीं सौ बार थे घसी जमाखातर राखजो संवत् १८६० ।' '
उपरोक्त पत्र से उक्त महानुभावों की महान् सेवाओं का स्पष्टतया पता लगता है। मेहता अखेचन्दजी
मेहता अखेचन्दजी के नाम का उल्लेख भी मारवाड़ राज्य के इतिहास में कई बार आया है। आपने भी एक समय महाराजा मानसिंहजी की बहुमूल्य सेवाएं की। जब संवत् १८५७ में तरकालीन : जोधपुर नरेश महाराजा भीमसिंहजी ने मानसिंहजी पर घेरा डालने के लिये जालौर पर अपनी फौजें भेजी और इन फौजों ने जालौर के उस सुप्रसिद्ध किले को जहाँ पर महाराजा मानसिंहजी स्थित थे घेर लिया। उस समय मेहता अखेराजजी ने महाराजा मानसिंह जी की वे सेवाएँ की जिनसे वे इतने दिनों तक अपने विरोधियों के सामने टिक सके। महाराज मानसिंहजी अपने किले में कई दिन तक घिरे रहे। इससे वहाँ पर अन्न और धन की बहुत कमी हो गई। ऐसे विकट समय में मेहता अखेचन्दजी ने एक गुप्त मार्ग द्वारा महाराजा मानसिंहजी की सेवा में रसद और धन पहुँचाना शुरू किया । इससे महाराजा मानसिंहजी को बड़ी भारी सहायता मिली और वे अधिक दिनों तक अपनी विरोधी फौजों का मुकाबिला कर सके।
___ जब संवत् १८६० की काती सुदी ४ को महाराजा भीमसिंहजी का स्वर्गवास हुआ और जब मानसिंहजी के सिवाय राज्य का कोई दूसरा अधिकारी न रहा तब उन्हीं सरदार तथा मुत्सुद्दियों ने जो गढ़