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नियुक्तिपंचक
भिन्नता है, जो इस प्रकार है -
वर्णान्तर अम्बष्ठ | उग्र पुरुष क्षत्रिय | वैश्य स्त्री वैश्या शूद्रा
निषाद दौष्मन्त | पारशव | सूत | मागध अयोगव |कृत वैदेहक चाण्डाल ब्राह्मण क्षत्रिय ब्राह्मण | क्षत्रिय | वैश्य
वैश्य वैश्या शूद्रा शूद्रा | ब्राह्मणी क्षत्रिया | वैश्या ब्राह्मणी | क्षत्रिया | ब्राह्मणी
शूद्र
इन जातियों का विस्तृत वर्णन महाभारत के अनुशासन पर्व में मिलता है। जैन पुराणों में भी अनेक जातियों एवं उपजातियों का उल्लेख मिलता है।' वर्णान्तर के संयोग से उत्पन्न जातियां
नियुक्तिकार ने वर्णान्तर से उत्पन्न चार जातियों का उल्लेख किया है। उनके अनुसार उग्र पुरुष से क्षत्त स्त्री में उत्पन्न जाति श्वपाक, वैदेह पुरुष से क्षत्त स्त्री में उत्पन्न जाति वैणव, निषाद पुरुष से अम्बष्ठ अथवा शूद्र स्त्री में उत्पन्न जाति बुक्कस तथा शूद्र पुरुष और निषाद स्त्री से उत्पन्न जाति कुक्कुरक कहलाती है। मनुस्मृति में वर्णसंकर जातियों के संयोग से उत्पन्न अनेक जातियों का उल्लेख है। उनकी उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार है
वर्णशंकर
कुक्कुटक
आवृत' | आभीर | धिग्वण" | पुक्कस' ब्राह्मण ब्राह्मण ब्राह्मण । निषाद उग्रा अम्बष्ठी अयोगवी | शूद्रा
श्वपाक | वेण । | मैत्रेयक २ | मार्गव क्षत्त वैदेह ।
अम्बष्ठी | अयोगवी | अयोगवी
पुरुष स्त्री
वैदेह
निषाद
निषादी
उग्रा
मज्झिमनिकाय में बुक्कस और वैणव आदि पांच जातियों को हीन माना है। वैदिक ग्रंथों में और भी अनेक वर्णसंकर जातियों का उल्लेख मिलता है लेकिन यहां केवल नियुक्ति में आयी वर्णसंकर जातियों की तुलना के लिए ग्रंथान्तर के उद्धरण दिए हैं। चूर्णिकार ने इनको सच्छंदमतिविगप्पितं माना है अर्थात् वैदिक परम्परा में वर्ण एवं वर्णसंकर जातियों की उत्पत्ति के विषय में जो कुछ कहा गया है, वह स्वच्छंदमति की कल्पना है ।१५ स्थावरकाय
आचारांग सूत्र का प्रारम्भ अस्तित्व-बोध की जिज्ञासा से होता है। भगवान् महावीर स्पष्ट कहते हैं कि पांच स्थावर जीवों के अस्तित्व के साथ ही अन्य प्राणियों का अस्तित्व टिका हुआ है। जो लोक (स्थावर जीवों) के अस्तित्व को नकारता है, वह अपने अस्तित्व को नकारता है ।१६ स्थावर जीवों में
१. गौ. १/४/१४, १५ । २. मभा. अनुशासन पर्व । ३. जैन पुराणों का.........पृ. ५२, ५३। ४. आनि २६, २७। ५-७. मनु १०/१५ । ८, ९. मनु १०/१८।
१०, ११. मनु १०/१९ । १२. मनु.१०/३३ । १३. मनु. १०/३४ मार्गव को दास और कैवर्त भी कहा जाता था। १४ मज्झिम २/५/३। १५. आचू पृ. ६। १६. आयारो १/६६।
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